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जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध: क्या है सरकार का तर्क?

जम्मू-कश्मीर सरकार ने 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, जिनमें अरुंधति रॉय की 'आज़ादी' और अन्य प्रमुख राजनीतिक विश्लेषकों की रचनाएं शामिल हैं। सरकार का कहना है कि ये किताबें युवाओं को हिंसा और आतंकवाद की ओर प्रेरित करती हैं। जानें इस निर्णय के पीछे के तर्क और कानूनी आधार। क्या ये कदम सही है? पढ़ें पूरी जानकारी के लिए।
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जम्मू-कश्मीर में 25 किताबों पर प्रतिबंध: क्या है सरकार का तर्क?

जम्मू-कश्मीर सरकार का नया कदम

Jammu Kashmir books ban: जम्मू-कश्मीर प्रशासन ने 25 किताबों पर प्रतिबंध लगाने का निर्णय लिया है, जिन पर आरोप है कि वे झूठे नैरेटिव और अलगाववाद को बढ़ावा देती हैं। इनमें अरुंधति रॉय की प्रसिद्ध पुस्तक 'आज़ादी', संविधान विशेषज्ञ ए. जी. नूरानी की 'द कश्मीर डिस्प्यूट 1947–2012', और राजनीतिक विश्लेषक सुमंत्र बोस की 'कश्मीर एट द क्रॉसरोड्स' तथा 'कॉन्टेस्टेड लैंड्स' शामिल हैं.


सरकार का आदेश और तर्क

गृह विभाग ने 5 अगस्त को एक अधिसूचना जारी की, जिसमें इन पुस्तकों को जब्त करने का निर्देश दिया गया। प्रधान सचिव चंद्राकर भारती द्वारा हस्ताक्षरित इस आदेश में कहा गया है कि यह साहित्य अक्सर ऐतिहासिक या राजनीतिक टिप्पणी के रूप में प्रस्तुत होता है, लेकिन वास्तव में यह युवाओं को हिंसा और आतंकवाद की ओर प्रेरित करता है.


युवाओं पर प्रभाव

युवाओं के मनोविज्ञान पर पड़ता है गहरा प्रभाव: सरकार

सरकार ने अपनी अधिसूचना में उल्लेख किया है कि ये किताबें युवाओं में शिकायत और पीड़ित होने की भावना को बढ़ावा देती हैं, साथ ही आतंकियों को नायक के रूप में प्रस्तुत करती हैं। दस्तावेज़ में कहा गया है कि यह साहित्य ऐतिहासिक तथ्यों को तोड़-मरोड़कर पेश करता है, आतंकियों की महिमा करता है, और सुरक्षा बलों को बदनाम करता है.


कानूनी कार्रवाई का आधार

किन धाराओं में की गई कार्रवाई?

इन 25 पुस्तकों को भारतीय नागरिक सुरक्षा संहिता (BNSS) 2023 की धारा 98 के तहत जब्त किया गया है। इसके अलावा, भारतीय न्याय संहिता (BNS) 2023 की धाराएं 152, 196 और 197 भी लागू की गई हैं.

धारा 98 (BNSS 2023): यह सरकार को ऐसे प्रकाशनों को जब्त करने का अधिकार देती है जो देश की अखंडता और संप्रभुता को खतरे में डालते हैं.

धारा 152, 196, 197 (BNS 2023): ये धाराएं सार्वजनिक सेवकों को बाधित करने, बिना उचित कारण के हमले और मदद न करने से संबंधित हैं.


अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन समूहों पर भी नजर

अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन हाउस भी निशाने पर

इन प्रतिबंधित किताबों को प्रकाशित करने वाले प्रमुख अंतरराष्ट्रीय प्रकाशन समूहों में Routledge, Stanford University Press और Oxford University Press शामिल हैं। सरकार का कहना है कि ये किताबें भारत की एकता और संप्रभुता के लिए खतरा उत्पन्न करती हैं.