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जाति जनगणना: आरक्षण की समीक्षा का नया तरीका

केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना कराने के निर्णय के बाद, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक में इस पर अपनी राय साझा की। उन्होंने बताया कि यह निर्णय समाज के हाशिए पर रहने वाले वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए लिया गया है। इस लेख में जाति जनगणना के पीछे के उद्देश्य, आरक्षण की समीक्षा की संभावनाएं और इसके सामाजिक प्रभावों पर चर्चा की गई है। जानें कि कैसे यह निर्णय राजनीतिक परिदृश्य को प्रभावित कर सकता है।
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जाति जनगणना: आरक्षण की समीक्षा का नया तरीका

प्रधानमंत्री मोदी का जाति जनगणना पर बयान

केंद्र सरकार द्वारा जाति जनगणना कराने के निर्णय के बाद, यह जानने की उत्सुकता थी कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस पर क्या विचार रखते हैं। एनडीए के मुख्यमंत्रियों की बैठक में उन्होंने इस मुद्दे पर अपनी चुप्पी तोड़ी और बताया कि यह निर्णय समाज के हाशिए पर रहने वाले वंचित वर्गों को मुख्यधारा में लाने के लिए लिया गया है। इसके बाद, एनडीए के मुख्यमंत्रियों के सम्मेलन में जाति जनगणना के लिए एक प्रस्ताव भी पारित किया गया, जिसमें भाजपा और समूचे एनडीए की सहमति थी।


आरएसएस और जाति जनगणना का संबंध

यह ध्यान देने योग्य है कि जिस दिन कैबिनेट ने यह निर्णय लिया, उससे पहले राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने प्रधानमंत्री मोदी से मुलाकात की थी। इस पर सवाल उठता है कि क्या यह निर्णय लोकसभा चुनाव के बाद जमीनी फीडबैक के आधार पर लिया गया या यह संघ का विचार है। क्या यह संघ का आइडिया है, जिसका उद्देश्य आरक्षण नीति की समीक्षा करना है?


आरक्षण की समीक्षा का इतिहास

10 साल पहले, भागवत ने बिहार में आरक्षण की समीक्षा की आवश्यकता बताई थी, जिसके बाद काफी हंगामा हुआ था। नरेंद्र मोदी की लोकप्रियता और पूर्ण बहुमत की सरकार के बावजूद, भाजपा बिहार में चुनाव हार गई थी। मंडल राजनीति के दो प्रमुख नेता, लालू प्रसाद और नीतीश कुमार ने यह धारणा बनाई थी कि संघ और भाजपा आरक्षण समाप्त कर देंगे।


जाति जनगणना का उद्देश्य

केंद्र सरकार का जाति जनगणना कराने का निर्णय दरअसल 10 साल पुरानी आरक्षण की समीक्षा का एक नया तरीका है। इस बार आरक्षण का जिक्र नहीं किया गया है, बल्कि जाति गणना की बात की गई है। लेकिन यदि हम बारीकी से देखें, तो यह स्पष्ट है कि इसका उद्देश्य आरक्षण की समीक्षा करना है।


संविधान में आरक्षण की स्थिति

संविधान में आरक्षण की व्यवस्था स्थायी नहीं है, लेकिन यह एक संवेदनशील मुद्दा है। आजादी के 75 साल बाद भी एससी, एसटी आरक्षण जारी है और ओबीसी आरक्षण पिछले 32 साल से चल रहा है। इसे समाप्त करने की हिम्मत कोई सरकार नहीं कर पा रही है।


जातियों की वास्तविक स्थिति का आकलन

भाजपा ने समझा है कि आरक्षण की समीक्षा करना या सशक्त जातियों को इसके दायरे से बाहर करना उसके लिए नुकसानदेह हो सकता है। इसलिए, जाति जनगणना के साथ जातियों की गिनती और उनकी आर्थिक स्थिति के आंकड़े जुटाए जाएंगे। इससे आरक्षण का लाभ लेने वाली जातियों की वास्तविक स्थिति सामने आएगी।


आरक्षण में वर्गीकरण की संभावना

जाति जनगणना के आंकड़ों के आधार पर, सरकार उन समूहों को आरक्षण का लाभ देने की कोशिश करेगी जो अब तक इससे वंचित रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने एससी आरक्षण के अंदर आरक्षण का वर्गीकरण करने का आदेश दिया है। इसके बाद, भाजपा और कांग्रेस दोनों सरकारों ने इसकी पहल शुरू कर दी है।


जातियों के बीच असमानता

जातियों के बीच असमानता को देखते हुए, जाति जनगणना के आंकड़ों के बाद एससी, एसटी और ओबीसी तीनों आरक्षण के अंदर वर्गीकरण होगा। इससे आरक्षण का अधिकतम लाभ लेने वाली जातियां सरकार से नाराज होंगी, लेकिन संघ और भाजपा को पता है कि वंचित जातियों का समर्थन अधिक महत्वपूर्ण है।


भविष्य की संभावनाएं

जाति जनगणना के बाद, सरकार वंचित जातियों को आरक्षण का अधिक लाभ देने की कोशिश करेगी। इससे जातियों के बीच ध्रुवीकरण होगा और आरक्षण की समीक्षा का कार्य एक नए तरीके से किया जाएगा।