झारखंड के वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन का निधन, राजनीति में गहरा शोक

शिबू सोरेन का निधन
झारखंड की राजनीति में महत्वपूर्ण योगदान देने वाले वरिष्ठ नेता शिबू सोरेन का सोमवार सुबह दिल्ली के श्री गंगाराम अस्पताल में निधन हो गया। 81 वर्षीय झामुमो के संरक्षक लंबे समय से बीमार थे और पिछले एक महीने से जीवन रक्षक प्रणाली पर थे। अस्पताल ने उन्हें सुबह 8:56 बजे मृत घोषित किया।राज्य के जनजातीय समुदाय और उनके समर्थकों के बीच ‘दिशोम गुरुजी’ के नाम से मशहूर शिबू सोरेन के निधन से झारखंड में शोक की लहर फैल गई है। उनके बेटे और वर्तमान मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने भावुक होकर कहा, “आज मैं भीतर से खाली हो गया हूं… हमारे गुरुजी हमें छोड़कर चले गए।”
शिबू सोरेन को किडनी की गंभीर बीमारी थी और डेढ़ महीने पहले उन्हें स्ट्रोक भी आया था। 24 जून को जब उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया, तब मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने उनके स्वास्थ्य की स्थिति की जानकारी साझा की थी।
झारखंड को पहचान दिलाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले शिबू सोरेन ने 1972 में झामुमो की स्थापना की। उन्होंने वामपंथी नेता ए.के. रॉय और बिनोद बिहारी महतो के साथ मिलकर झारखंड को एक अलग राज्य बनाने की मुहिम चलाई। रामगढ़ में जन्मे सोरेन ने संथाल समुदाय के अधिकारों और पहचान के लिए जीवनभर संघर्ष किया।
उनका संसदीय करियर भी उल्लेखनीय रहा। उन्होंने आठ बार लोकसभा और दो बार राज्यसभा के सदस्य के रूप में कार्य किया। पहली बार 1980 में दुमका सीट से चुने गए, जो बाद में झामुमो का गढ़ बन गई। हालांकि, 2019 में उनकी हार ने राजनीतिक हलकों को चौंका दिया, जब बीजेपी के नलिन सोरेन ने उन्हें कड़ी टक्कर देकर जीत हासिल की।
उनकी मृत्यु न केवल एक राजनीतिक युग के अंत का प्रतीक है, बल्कि यह उन आदिवासी संघर्षों की विरासत को भी उजागर करती है, जिसके वह चेहरा रहे। झारखंड के आम लोग, विशेषकर आदिवासी समाज, उन्हें केवल एक नेता नहीं, बल्कि एक आंदोलन के प्रतीक के रूप में देखते हैं।