झारखंड मुक्ति मोर्चा के नेता शिबू सोरेन का निधन: राजनीतिक सफर की झलक

शिबू सोरेन का निधन
रांची - झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख शिबू सोरेन का सोमवार को निधन हो गया। वे पिछले एक महीने से दिल्ली के सर गंगा राम अस्पताल में इलाज करा रहे थे, जहां उनकी देखभाल के लिए डॉक्टरों की एक टीम तैनात थी। उनके बेटे और झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता के निधन की सूचना सोशल मीडिया पर साझा की।
शिबू सोरेन की राजनीतिक यात्रा
शिबू सोरेन, जिन्हें 'दिशोम गुरु' के नाम से भी जाना जाता है, का जन्म 11 जनवरी 1944 को रामगढ़ जिले के नेमरा गांव में हुआ। उनके पिता सोबरन मांझी की हत्या ने उनके जीवन को एक नया मोड़ दिया, जिसके बाद उन्होंने सामाजिक और राजनीतिक आंदोलनों में भाग लेना शुरू किया। 1970 के दशक में उन्होंने झारखंड मुक्ति मोर्चा (जेएमएम) की स्थापना की और सूदखोरी, शराबबंदी, और आदिवासी अधिकारों के लिए संघर्ष किया। 1971 में वे जेएमएम के राष्ट्रीय महासचिव बने।
चुनावी सफर
शिबू सोरेन ने 1977 में दुमका लोकसभा सीट से चुनाव लड़ा, लेकिन उन्हें हार का सामना करना पड़ा। 1980 में वे पहली बार सांसद बने और इसके बाद 1989, 1991, 1996, और 2002 में भी दुमका से सांसद रहे। इसके अलावा, उन्होंने राज्यसभा के सदस्य के रूप में भी कार्य किया। उन्होंने झारखंड अलग राज्य आंदोलन का नेतृत्व किया, जो 2000 में सफल हुआ। शिबू सोरेन तीन बार (2005, 2008-09, 2009-10) झारखंड के मुख्यमंत्री बने, लेकिन वे कभी भी अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सके।
विवाद और विरासत
2004 में वे यूपीए सरकार में कोयला मंत्री बने, लेकिन चिरूडीह कांड और शशि नाथ झा हत्या मामले में विवादों के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, बाद में हाईकोर्ट ने उन्हें बरी कर दिया। 1993 के सांसद घूसकांड में भी उनका नाम आया, लेकिन कोर्ट ने उन्हें राहत दी। उनके बेटे हेमंत सोरेन और परिवार के अन्य सदस्य जेएमएम के माध्यम से उनकी विरासत को आगे बढ़ा रहे हैं।