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झारखंड में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़, तीन नक्सली ढेर

झारखंड के गुमला जिले में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच हुई मुठभेड़ में तीन नक्सली मारे गए हैं। यह कार्रवाई पुलिस को मिली गुप्त सूचना के आधार पर की गई थी। सुरक्षाबलों ने इस दौरान एक एके-47 राइफल समेत कई आधुनिक हथियार बरामद किए हैं। अभियान के तहत इलाके में तलाशी जारी है, जिससे और नक्सलियों को पकड़ने की कोशिश की जा रही है। जानें इस मुठभेड़ के पीछे की कहानी और राज्य में चल रहे नक्सल विरोधी अभियानों के बारे में।
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झारखंड में सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़, तीन नक्सली ढेर

गुमला में सुरक्षाबलों की बड़ी कार्रवाई

गुमला जिले के घाघरा क्षेत्र में शनिवार को सुरक्षाबलों और नक्सलियों के बीच एक गंभीर मुठभेड़ हुई, जिसमें तीन नक्सली मारे गए। पुलिस के अनुसार, ये सभी नक्सली झारखंड जनमुक्ति परिषद (जेजेएमपी) से संबंधित थे, जो भाकपा (माओवादी) से अलग एक उग्रवादी समूह है। इस मुठभेड़ के दौरान सुरक्षाबलों ने एक एके-47 राइफल सहित कई आधुनिक हथियार भी बरामद किए हैं।


यह अभियान पुलिस को मिली गुप्त सूचना के आधार पर शुरू किया गया था। झारखंड पुलिस के अभियान महानिरीक्षक माइकल एस. राज ने बताया कि इलाके में तलाशी अभियान अभी भी जारी है। माना जा रहा है कि जंगलों में और नक्सली छिपे हो सकते हैं, जिन्हें पकड़ने के लिए सघन घेराबंदी की जा रही है।


जंगल में एक और भीषण मुठभेड़

गुमला की मुठभेड़ का महत्व


गुमला की यह मुठभेड़ ऐसे समय में हुई है जब ठीक 10 दिन पहले, 16 जुलाई को बोकारो के गोमिया थाना क्षेत्र के बिरहोदेरा जंगल में एक और गंभीर मुठभेड़ हुई थी। उस ऑपरेशन में 5 लाख रुपये का इनामी माओवादी मारा गया था, हालांकि एक सीआरपीएफ जवान भी शहीद हो गया था। गोलीबारी में एक आम नागरिक की भी मौत हो गई थी, जिसे शुरुआत में माओवादी समझ लिया गया था।


नक्सल विरोधी अभियान की गति

राज्य में नक्सल विरोधी कार्रवाई तेज


राज्य में पिछले कुछ महीनों से नक्सल विरोधी अभियान को तेज किया गया है। विशेष रूप से लातेहार, लोहरदगा, गुमला और चतरा जैसे क्षेत्रों में सुरक्षाबलों की कार्रवाई लगातार जारी है। इन अभियानों में भारी मात्रा में हथियार, विस्फोटक और माओवादी साहित्य बरामद हो रहा है। यह स्पष्ट है कि नक्सली संगठन नए लोगों की भर्ती और अपने नेटवर्क को मजबूत करने की कोशिश कर रहे हैं। गुमला की हालिया कार्रवाई को सुरक्षाबलों की एक रणनीतिक सफलता माना जा रहा है, जिससे नक्सलियों के बचे-खुचे गढ़ों पर दबाव बना रहेगा।