ट्रंप की विदेश नीति पर सवाल: अमेरिका में बढ़ती अस्थिरता

ट्रंप की विफल विदेश नीति
यह स्पष्ट हो चुका है कि ट्रंप की विदेश नीति पूरी तरह से असफल रही है। चाहे वह रूस और यूक्रेन के बीच संघर्ष को समाप्त करने के उनके दावे हों या फिर इजरायल और हमास के बीच शांति स्थापित करने की कोशिशें, हर जगह उन्हें निराशा ही हाथ लगी है। भारत और पाकिस्तान के बीच ऑपरेशन सिंदूर के दौरान हुई झड़पों के संदर्भ में उनके द्वारा किए गए झूठे दावों ने भी उनकी विश्वसनीयता को और कम किया है। ट्रंप अब अमेरिका के नागरिकों पर अपना गुस्सा निकाल रहे हैं। उन्होंने पहले कहा कि भारत पर 50% टैरिफ लगाया जा रहा है, लेकिन यह नहीं बताया कि इसका बोझ कौन उठाएगा।
इजरायल की अनसुनी
ट्रंप की बातें अब इजरायल जैसे छोटे देश भी नहीं मान रहे हैं। रूस, चीन और भारत पहले से ही अपनी स्वतंत्र नीतियों के कारण ट्रंप के लिए सिरदर्द बने हुए हैं। अब वह अपनी सेना को शहरों में तैनात कर एक डर का माहौल बना रहे हैं, यह कहते हुए कि वहां बड़े गैंग्स और आपराधिक गतिविधियाँ हैं। यह पाकिस्तान की सोच का परिणाम प्रतीत होता है, जहां नागरिक क्षेत्रों में सेना की उपस्थिति सामान्य है।
ट्रंप का विद्रोह अधिनियम का जिक्र
राष्ट्रपति ट्रंप ने कहा है कि यदि न्यायालय उनके निर्णयों को रोकते हैं, तो वह विद्रोह अधिनियम का सहारा लेकर सेना भेज देंगे। उन्होंने ओवल ऑफिस में पत्रकारों से कहा कि यदि आवश्यक हुआ, तो वह ऐसा करेंगे। उनका कहना है कि यह सुनिश्चित करना जरूरी है कि लोग सुरक्षित रहें और शहरों में शांति बनी रहे।
विद्रोह अधिनियम का महत्व
1807 का विद्रोह अधिनियम राष्ट्रपति को विशेष परिस्थितियों में अमेरिकी सेना को नागरिक कानून प्रवर्तन के लिए तैनात करने का अधिकार देता है। एनबीसी न्यूज़ के अनुसार, इसका अंतिम बार उपयोग 1992 के लॉस एंजेलिस दंगों के दौरान किया गया था। विद्रोह अधिनियम का एक प्रारंभिक संस्करण 1792 में पारित किया गया था, जिसका उद्देश्य संघ के कानूनों को लागू करना और विद्रोहों को दबाना था।