डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की रहस्यमय मृत्यु: एक अनसुलझा मामला

डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी का निधन
डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी: 23 जून 1953 को डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु एक दुखद घटना के रूप में सामने आई, जब जम्मू और कश्मीर सरकार ने उन्हें बिना किसी कानूनी प्रक्रिया के गिरफ्तार कर लिया। उस समय उनकी उम्र केवल 52 वर्ष थी। वे भारत के पहले स्वतंत्रता सेनानी और भारतीय राजनीति के एक प्रमुख नेता थे। डॉ. मुखर्जी ने भारतीय जन संघ की स्थापना की, जो बाद में भारतीय जनता पार्टी (BJP) में परिवर्तित हो गया।
प्रधानमंत्री नेहरू को मिली पहली सूचना
डॉ. मुखर्जी की मृत्यु की पहली सूचना प्रधानमंत्री नेहरू को जिनेवा में प्राप्त हुई। उनके निधन के बाद, उनकी मां, जोगमाया देवी ने नेहरू को एक पत्र लिखा, जिसमें उन्होंने आरोप लगाया कि उनके बेटे को बिना मुकदमे के जेल में मारा गया और जम्मू और कश्मीर सरकार ने अत्यंत कठोरता से उन्हें इस बारे में सूचित किया।
मृत्यु की जांच की मांग
उनकी मृत्यु के बाद, पश्चिम बंगाल विधानसभा ने 27 नवंबर 1953 को एक प्रस्ताव पारित किया, जिसमें डॉ. मुखर्जी की मृत्यु की जांच की मांग की गई। हालांकि, इस प्रस्ताव में संशोधन किया गया और कहा गया कि जम्मू और कश्मीर सरकार से ही इस मामले की जांच कराई जाए। उस समय के पश्चिम बंगाल के मुख्यमंत्री डॉ. बिधान चंद्र रॉय ने इस मामले पर कोई ठोस कदम नहीं उठाया और इसे जम्मू कश्मीर सरकार पर छोड़ दिया।
फैसले का विरोध
कई नेताओं ने इस निर्णय का विरोध किया, विशेषकर सांसद सुधीर चंद्र राय चौधुरी ने सवाल उठाया कि बिधान चंद्र रॉय ने पहले जांच की आवश्यकता जताई थी और फिर इसे नकार दिया। हालांकि, कांग्रेस पार्टी के नेताओं ने इस संशोधन का समर्थन किया और इसे जम्मू कश्मीर सरकार की जिम्मेदारी माना।
चुप्पी का आलम
केंद्र सरकार ने इस मामले को जम्मू और कश्मीर सरकार को भेज दिया, लेकिन इसके बाद कोई कार्रवाई नहीं हुई। जम्मू कश्मीर सरकार ने इस पर कोई जांच नहीं की और न ही इस मुद्दे पर कोई रिपोर्ट तैयार की गई। नतीजतन, डॉ. श्यामा प्रसाद मुखर्जी की मृत्यु की परिस्थितियों की जांच को लेकर भारत सरकार, जम्मू कश्मीर सरकार और पश्चिम बंगाल सरकार सभी ने चुप्पी साध ली। डॉ. मुखर्जी की असमय मृत्यु आज भी एक अनसुलझा सवाल बनी हुई है।