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डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर अमेरिकी अदालत का महत्वपूर्ण फैसला

अमेरिकी अदालत ने डोनाल्ड ट्रंप की विवादास्पद टैरिफ नीति को अस्थायी रूप से जारी रखने की अनुमति दी है, जिससे ट्रंप प्रशासन को अपनी आर्थिक रणनीति को कुछ समय के लिए बनाए रखने में मदद मिली है। यह निर्णय उस समय आया है जब 'रेसिप्रोकल टैरिफ' नीति की अवधि समाप्त होने वाली है। अगली सुनवाई 31 जुलाई को होगी, जिसमें अदालत इस मामले पर जल्द निर्णय लेने की कोशिश कर रही है। जानें इस नीति के पीछे का इतिहास और इसके खिलाफ उठाए गए सवाल।
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डोनाल्ड ट्रंप की टैरिफ नीति पर अमेरिकी अदालत का महत्वपूर्ण फैसला

अमेरिकी अदालत का निर्णय

एक अमेरिकी अदालत ने डोनाल्ड ट्रंप की वैश्विक टैरिफ नीति के संबंध में एक महत्वपूर्ण निर्णय सुनाया है। अदालत ने ट्रंप प्रशासन की विवादास्पद टैरिफ नीति को अस्थायी रूप से जारी रखने की अनुमति दी है। यह निर्णय उस आदेश की अवधि को बढ़ाने के रूप में आया है, जिसमें एक निचली अदालत के फैसले को रोक दिया गया था। इससे ट्रंप प्रशासन को अपनी प्रमुख आर्थिक रणनीति को कुछ समय के लिए जारी रखने में मदद मिली है.


अगली सुनवाई की तारीख

यह निर्णय उस समय आया है जब ट्रंप द्वारा घोषित 'रेसिप्रोकल टैरिफ' नीति की 90 दिनों की अवधि 9 जुलाई को समाप्त होने वाली है। यदि इस तारीख के बाद कोई देश अमेरिका के साथ व्यापार समझौते पर नहीं पहुंचता है, तो टैरिफ दरों में भारी वृद्धि की संभावना है। अदालत ने इस विवाद को अत्यधिक महत्वपूर्ण मानते हुए मामले की अगली सुनवाई 31 जुलाई को निर्धारित की है, जिससे यह स्पष्ट होता है कि न्यायालय इस पर जल्द निर्णय लेना चाहता है.


टैरिफ नीति का इतिहास

ट्रंप के नेतृत्व में लागू की गई टैरिफ नीति में 10% वैश्विक शुल्क और चीन, कनाडा, मैक्सिको तथा यूरोपीय संघ के देशों पर अतिरिक्त शुल्क शामिल हैं। यह सभी शुल्क 1977 के इंटरनेशनल इमरजेंसी इकनॉमिक पावर्स एक्ट (IEEPA) के तहत लागू किए गए थे, जो आमतौर पर आपातकालीन स्थितियों, जैसे युद्ध या राष्ट्रीय सुरक्षा संकट में उपयोग किया जाता है। इससे पहले एक व्यापार अदालत ने IEEPA के तहत ट्रंप के इस कदम को अनुचित करार दिया था और कहा था कि यह कानून राष्ट्रपति को मनमाने ढंग से आयात शुल्क लगाने का अधिकार नहीं देता.


निर्णय का स्थगन

हालांकि, मंगलवार को आए अदालत के फैसले से यह निर्णय फिलहाल के लिए स्थगित कर दिया गया है। इस नीति को चुनौती देने वालों में न्यूयॉर्क स्थित वाइन आयातक V.O.S. Selections जैसे कारोबारी और कुछ डेमोक्रेटिक शासित राज्य शामिल हैं, जिन्होंने इसे आर्थिक रूप से हानिकारक और असंवैधानिक बताया है.