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तमिलनाडु में पिता-पुत्र के बीच राजनीतिक संघर्ष: PMK में उथल-पुथल

तमिलनाडु की राजनीति में एक बड़ा भूचाल आया है जब डॉ. एस. रामदॉस ने अपने बेटे अंबुमणि रामदॉस को पार्टी से निष्कासित कर दिया। यह विवाद तब उभरा है जब अंबुमणि सत्तारूढ़ डीएमके के खिलाफ एक बड़ा अभियान चला रहे थे। डॉ. रामदॉस ने अपने बेटे पर अनुशासनहीनता के आरोप लगाए हैं। इस पारिवारिक लड़ाई का PMK के पारंपरिक वोट बैंक और आगामी चुनावों पर क्या असर होगा, यह जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
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राजनीतिक भूचाल का कारण

तमिलनाडु की राजनीतिक स्थिति में एक बड़ा बदलाव आया है, जब डॉ. एस. रामदॉस ने अपने बेटे अंबुमणि रामदॉस को पार्टी से बाहर कर दिया। यह निर्णय उन्होंने पार्टी विरोधी गतिविधियों के चलते लिया। डॉ. रामदॉस ने आरोप लगाया कि अंबुमणि को अनुशासनहीनता के मामलों में दो बार नोटिस भेजा गया था, लेकिन उन्होंने कोई प्रतिक्रिया नहीं दी।


पारिवारिक और राजनीतिक विवाद

डॉ. रामदॉस ने अपने बेटे को "राजनीतिक रूप से अयोग्य" करार दिया और उनकी तुलना एक खरपतवार से की, जिसे उखाड़ने की आवश्यकता है। यह विवाद तब उभरा है जब अंबुमणि राज्य में सत्तारूढ़ डीएमके के खिलाफ एक बड़ा अभियान चला रहे थे। अंबुमणि के समर्थकों ने इस निष्कासन को अमान्य बताया है, यह कहते हुए कि पार्टी की आम परिषद ने उनके अध्यक्ष पद को अगस्त 2026 तक बढ़ा दिया था।


PMK का राजनीतिक इतिहास

पार्टी की स्थापना 1989 में डॉ. एस. रामदॉस ने वन्नियार समुदाय की राजनीतिक आवाज के रूप में की थी। PMK ने खुद को एक क्षेत्रीय पार्टी के रूप में स्थापित किया है, जो जातिगत पहचान और सामाजिक कल्याण की वकालत करती है। 2000 के दशक की शुरुआत में, PMK ने कांग्रेस के नेतृत्व वाले UPA के साथ गठबंधन में 6 लोकसभा सीटें जीती थीं। हालांकि, हाल के वर्षों में पार्टी का प्रदर्शन गिरा है।


राजनीतिक संघर्ष का प्रभाव

पिता-पुत्र के इस संघर्ष का PMK के पारंपरिक वन्नियार वोट बैंक पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है। यदि पार्टी में गुटबाजी होती है, तो इसका चुनावी प्रदर्शन कमजोर हो सकता है। PMK, जो एनडीए में बीजेपी की सहयोगी रही है, इस आंतरिक कलह के कारण अपनी मोलभाव की शक्ति खो सकती है।


आने वाले विधानसभा चुनावों में, यह संघर्ष सीट बंटवारे और प्रचार पर सीधा असर डाल सकता है। एक कमजोर PMK का लाभ उसके प्रतिद्वंद्वियों को मिल सकता है। वर्तमान में, यह विवाद सुलझता नहीं दिख रहा है, और यह देखना होगा कि अंबुमणि अपने निष्कासन को स्वीकार करते हैं या इसके खिलाफ कानूनी लड़ाई लड़ते हैं।