तमिलनाडु में मतदाता सूची की शुद्धता पर विवाद: SIR प्रक्रिया के बाद 97 लाख नाम हटाए गए
मतदाता सूची की शुद्धता पर विवाद
चुनाव से पहले मतदाता सूची की शुद्धता सुनिश्चित करने के लिए विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) तमिलनाडु में एक बड़ा राजनीतिक विवाद उत्पन्न कर चुका है। राज्य में 97 लाख से अधिक मतदाताओं के नाम हटाए जाने के बाद विपक्ष ने चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं।
मुख्यमंत्री का आरोप
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने इसे एक सुनियोजित साजिश करार देते हुए कहा है कि यह लोकतांत्रिक प्रक्रिया को कमजोर करने वाला कदम है। दूसरी ओर, चुनाव आयोग ने इसे एक नियमित और कानूनी प्रक्रिया बताया है।
SIR के बाद मतदाताओं की संख्या में कमी
तमिलनाडु की मुख्य निर्वाचन अधिकारी अर्चना पटनायक के अनुसार, SIR के बाद राज्य में कुल मतदाताओं की संख्या 5,43,76,755 रह गई है, जिसमें लगभग 2.66 करोड़ महिलाएं और 2.77 करोड़ पुरुष शामिल हैं। इससे पहले यह संख्या लगभग 6.41 करोड़ थी, जिससे 97,37,832 नाम हटाए गए हैं।
हटाए गए नामों का कारण
चुनाव आयोग के अनुसार, हटाए गए नामों में 26.94 लाख मृत मतदाता, 66.44 लाख ऐसे लोग शामिल हैं जो स्थायी रूप से स्थानांतरित हो चुके हैं, और 3.39 लाख डुप्लीकेट प्रविष्टियां थीं। आयोग ने तीन चरणों में घर-घर जाकर सत्यापन किया, जिसमें बड़ी संख्या में लोग अपने पते पर नहीं पाए गए। विशेष रूप से चेन्नई में 14.25 लाख नाम हटाए गए।
मुख्यमंत्री का विरोध
मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने SIR को 'लोकतंत्र विरोधी' बताते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। उनका कहना है कि चुनाव से ठीक पहले मतदाता सूची का पुनरीक्षण एक सुनियोजित रणनीति है, जिसका उद्देश्य वैध मतदाताओं को बाहर करना है। उन्होंने बिहार का उदाहरण देते हुए कहा कि वहां भी इसी तरह लाखों मतदाताओं के नाम हटाए गए थे।
राजनीतिक आरोप-प्रत्यारोप
स्टालिन ने AIADMK प्रमुख ई. पलानीस्वामी पर भी निशाना साधते हुए उन्हें भाजपा और चुनाव आयोग के दबाव में बताया। उन्होंने कहा कि जहां तमिलनाडु में प्रवासी मजदूरों को सम्मान और रोजगार मिला, वहीं केंद्र सरकार बिहार में राजनीतिक लाभ के लिए अलग नैरेटिव गढ़ रही है। इस मुद्दे पर विपक्षी दलों ने संसद के शीतकालीन सत्र में भी हंगामा किया।
SIR की प्रक्रिया
विशेष गहन पुनरीक्षण (SIR) चुनाव आयोग द्वारा मतदाता सूची को अद्यतन और त्रुटिरहित बनाने के लिए किया जाता है। इसके तहत बूथ स्तर के अधिकारी घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करते हैं, मृत, स्थानांतरित या डुप्लीकेट नाम हटाते हैं और नए मतदाताओं को जोड़ते हैं। यह प्रक्रिया जनप्रतिनिधित्व अधिनियम, 1950 के तहत की जाती है, ताकि चुनाव निष्पक्ष और पारदर्शी रह सकें।
