Newzfatafatlogo

तमिलनाडु में हिंदी के उपयोग पर रोक लगाने के लिए विधेयक का प्रस्ताव

तमिलनाडु की डीएमके सरकार हिंदी भाषा के अनियंत्रित उपयोग पर रोक लगाने के लिए एक विधेयक लाने की तैयारी कर रही है। यह विधेयक हिंदी में होर्डिंग्स, साइनबोर्ड, फिल्मों और संगीत पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करेगा। मुख्यमंत्री स्टालिन का कहना है कि यह कदम तमिल भाषा और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के लिए आवश्यक है। राज्य में हिंदी के खिलाफ दशकों पुराना संघर्ष रहा है, जो हाल के वर्षों में और भी बढ़ गया है। जानें इस विधेयक के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
 | 
तमिलनाडु में हिंदी के उपयोग पर रोक लगाने के लिए विधेयक का प्रस्ताव

मुख्यमंत्री स्टालिन का नया विधेयक


तमिलनाडु: मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन के नेतृत्व में द्रविड़ मुन्नेत्र कझगम (डीएमके) सरकार विधानसभा में हिंदी भाषा के अनियंत्रित उपयोग पर रोक लगाने के लिए एक महत्वपूर्ण विधेयक लाने की योजना बना रही है। सूत्रों के अनुसार, यह विधेयक राज्य में हिंदी में होर्डिंग्स, साइनबोर्ड, फिल्मों और संगीत पर प्रतिबंध लगाने का प्रावधान करेगा, जिसे तमिल भाषा और सांस्कृतिक पहचान की सुरक्षा के रूप में देखा जा रहा है।


हालांकि, राज्य सरकार ने इस विधेयक पर अभी तक कोई आधिकारिक बयान नहीं दिया है, लेकिन कानूनी विशेषज्ञों के साथ हाल की बैठकों और विधानसभा सत्र के अंतिम दिनों में इसकी पेशी की अटकलें बढ़ रही हैं। डीएमके के एक वरिष्ठ नेता ने नाम न छापने की शर्त पर कहा, "हमारा उद्देश्य संविधान का उल्लंघन नहीं करना है। हम तमिलनाडु की भाषाई विविधता को मजबूत करना चाहते हैं। हिंदी को एक भाषा के रूप में स्वीकार करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन केंद्र द्वारा इसे जबरन थोपना अस्वीकार्य है।"


दशकों पुराना संघर्ष
तमिलनाडु में हिंदी के खिलाफ विरोध कोई नई बात नहीं है। आजादी के बाद से यह राज्य भाषाई अस्मिता के मुद्दे पर संवेदनशील रहा है। 1930-40 के दशक में द्रविड़ आंदोलन के दौरान हिंदी थोपने के खिलाफ बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुए थे। डीएमके के संस्थापक सी.एन. अन्नादुराई ने इस आंदोलन को मजबूती प्रदान की थी। 1960 के दशक में केंद्र सरकार के तीन-भाषा फॉर्मूले को लागू करने के प्रयासों के खिलाफ तमिलनाडु में व्यापक आंदोलन हुए, जिसमें हिंसा और राजनीतिक उथल-पुथल भी शामिल थी।


हाल के वर्षों में यह विवाद राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी 2020) के तहत तीन-भाषा फॉर्मूले को लेकर फिर से भड़का। डीएमके का आरोप है कि केंद्र हिंदी और संस्कृत को प्राथमिकता देकर दक्षिणी राज्यों की स्थानीय भाषाओं को हाशिए पर धकेल रहा है। फरवरी 2025 में मुख्यमंत्री स्टालिन ने सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में लिखा था, "जबरन हिंदी थोपने से पिछले सौ वर्षों में 25 उत्तरी भारतीय भाषाएं लुप्त हो चुकी हैं। क्या हम तमिल जैसी प्राचीन भाषा को भी इसी खतरे में डालना चाहते हैं?" इसी संदर्भ में मार्च 2025 के राज्य बजट में स्टालिन सरकार ने भारतीय रुपए के प्रतीक '₹' को तमिल अक्षर 'ரூ' से बदल दिया, जो भाषाई स्वायत्तता का प्रतीक माना गया।