तेज प्रताप यादव का महुआ से निर्दलीय चुनाव लड़ने का ऐलान: क्या है परिवार में दरार?

तेज प्रताप का चुनावी फैसला
राजद (RJD) के प्रमुख लालू प्रसाद यादव के बड़े बेटे और पूर्व स्वास्थ्य मंत्री तेज प्रताप यादव ने स्पष्ट किया है कि वे आगामी विधानसभा चुनाव में वैशाली जिले की महुआ सीट से निर्दलीय उम्मीदवार के रूप में अपनी किस्मत आजमाएंगे। यह वही सीट है, जहां से उन्होंने 2015 में पहली बार चुनाव जीतकर राजनीति में कदम रखा था। इस बार, वे पार्टी और परिवार से अलग होकर अपनी स्वतंत्र राह चुनने का प्रयास कर रहे हैं.
राजनीति और परिवार का अलगाव
एक टीवी चैनल के साथ बातचीत में जब तेज प्रताप से पूछा गया कि क्या तेजस्वी यादव भी महुआ सीट से चुनाव लड़ सकते हैं, तो उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि यदि ऐसा होता है, तो वे तेजस्वी की सीट राघोपुर से चुनाव लड़ने के लिए तैयार हैं। तेज प्रताप ने यह भी कहा कि राजनीति और परिवार को अलग रखना बेहतर है।
महुआ की जनता का समर्थन
तेज प्रताप ने यह भी कहा कि महुआ की जनता उनके कार्यों को नहीं भूली है। उन्होंने दावा किया कि महुआ में मेडिकल कॉलेज, अस्पताल, सड़कें और अन्य विकास कार्य उनके प्रयासों के कारण संभव हुए हैं। उन्होंने बताया कि मेडिकल कॉलेज को कहीं और स्थानांतरित किया जा रहा था, लेकिन उन्होंने इसे वहीं बनवाने के लिए संघर्ष किया।
परिवार से दूरी का स्वीकार
तेज प्रताप ने स्वीकार किया कि वे इस समय परिवार से दूरी बनाए हुए हैं, लेकिन इसका मतलब यह नहीं है कि वे पारिवारिक रिश्तों की कद्र नहीं करते। उन्होंने कहा कि वे चाहते हैं कि परिवार में संवाद हो और सभी को सम्मान मिले। हालांकि, जब कोई बात नहीं करेगा, तो उनके प्रयासों का कोई लाभ नहीं होगा।
अलग राजनीतिक राहें
तेज प्रताप 2015 में महुआ से विधायक बने थे, जबकि 2020 में उन्होंने समस्तीपुर जिले की हसनपुर सीट से चुनाव जीतकर अपनी स्थिति मजबूत की। दूसरी ओर, तेजस्वी यादव ने 2015 में राघोपुर से चुनाव जीता और 2020 में भी उसी सीट से दोबारा विधायक बने। दोनों भाइयों की राजनीतिक यात्रा एक ही दल से शुरू हुई, लेकिन अब उनके रास्ते अलग हो चुके हैं।
लालू परिवार में सियासी घमासान
तेज प्रताप के इस निर्णय के बाद यह स्पष्ट हो गया है कि राजद में आंतरिक कलह अब सार्वजनिक हो चुकी है। यदि तेज प्रताप निर्दलीय चुनाव लड़ते हैं और तेजस्वी महुआ से उनके सामने चुनावी मैदान में उतरते हैं, तो यह मुकाबला केवल राजनीतिक नहीं, बल्कि पारिवारिक भी बन जाएगा। इससे लालू यादव की चुनौतियाँ और बढ़ सकती हैं, क्योंकि उन्हें पार्टी को संभालने के साथ-साथ अपने परिवार को भी एकजुट रखना है।