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तेलंगाना की जुबली हिल्स सीट पर कांग्रेस की चुनावी रणनीति

तेलंगाना की जुबली हिल्स सीट पर 11 नवंबर को मतदान होना है। कांग्रेस ने इस सीट पर चुनावी रणनीति में सक्रियता दिखाई है, खासकर जब मुस्लिम आबादी का बड़ा हिस्सा यहां है। पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन को एमएलसी बना दिया गया है, जबकि वल्लाला नवीन यादव को उम्मीदवार बनाया गया है। बीआरएस और भाजपा के उम्मीदवारों के साथ मुकाबला करते हुए कांग्रेस की जीत की संभावनाएं क्या हैं? जानें इस चुनावी हलचल के बारे में।
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तेलंगाना की जुबली हिल्स सीट पर कांग्रेस की चुनावी रणनीति

जुबली हिल्स सीट पर चुनावी हलचल

11 नवंबर को हैदराबाद की जुबली हिल्स सीट पर मतदान होने वाला है। इससे पहले, तेलंगाना की कांग्रेस सरकार ने इस सीट पर चुनावी तैयारी में जोश दिखाया है। यह सीट भारत राष्ट्र समिति के विधायक गोपीनाथ के निधन के कारण खाली हुई है। पिछली बार कांग्रेस ने इस सीट पर पूर्व क्रिकेटर मोहम्मद अजहरूद्दीन को उम्मीदवार बनाया था। जब यह सीट खाली हुई, तो यह उम्मीद की जा रही थी कि कांग्रेस फिर से अजहरूद्दीन को मैदान में उतारेगी। लेकिन पार्टी को यह समझ में आया कि मुस्लिम उम्मीदवार देने से ध्रुवीकरण हो सकता है, जबकि वह मुस्लिम समुदाय को भी नाराज नहीं करना चाहती थी। इसलिए, अजहर को एमएलसी बना दिया गया और अब उन्हें रेवंत रेड्डी की सरकार में पहले मुस्लिम मंत्री के रूप में शामिल किया जा रहा है।


कांग्रेस और उसकी राज्य सरकार एक सीट के लिए कितनी मेहनत कर रही है, यह सोचने वाली बात है, खासकर तब जब असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ने कांग्रेस को समर्थन दिया है। इस सीट पर मुस्लिम आबादी लगभग 30 प्रतिशत है और कोई अन्य मुस्लिम उम्मीदवार नहीं है। कांग्रेस ने वल्लाला नवीन यादव को टिकट दिया है, जबकि बीआरएस ने गोपीनाथ के परिवार से मंगती सुनीता गोपीनाथ को उम्मीदवार बनाया है। भाजपा ने लंकला दीपक रेड्डी को मैदान में उतारा है। माना जा रहा है कि हिंदू वोटों के बंटवारे और एकजुट मुस्लिम वोट मिलने से कांग्रेस की जीत की संभावना मजबूत है। फिर भी, रेवंत रेड्डी कोई जोखिम नहीं लेना चाहते। उन्हें पता है कि बीआरएस और भाजपा दोनों को चुनाव में जीत की आवश्यकता है। यदि इनमें से कोई भी पार्टी जीत जाती है, तो उनकी सुस्ती खत्म हो जाएगी और कार्यकर्ताओं में उत्साह लौट आएगा। दूसरी ओर, यदि कांग्रेस हारती है, तो विरोधी पक्ष सक्रिय हो जाएगा और सत्ता परिवर्तन की चर्चा शुरू हो सकती है। इसलिए, रेवंत रेड्डी नहीं चाहते कि उनकी सरकार के मध्यावधि में कोई समस्या उत्पन्न हो।