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तेलंगाना में विधायकों के पाला बदलने पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश

तेलंगाना में भारत राष्ट्र समिति के 10 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के मामले में सुप्रीम कोर्ट ने विधानसभा के स्पीकर को तीन महीने के भीतर निर्णय लेने का आदेश दिया है। यह मामला एक साल से अधिक समय से लंबित है, और सुप्रीम कोर्ट ने स्पष्ट किया है कि यदि विधायकों को अयोग्य ठहराया जाता है, तो उनकी सीटें रिक्त होंगी और उपचुनाव होंगे। इस स्थिति में, यह देखना दिलचस्प होगा कि स्पीकर क्या तर्क प्रस्तुत करते हैं। इस मामले में स्थायी समाधान की आवश्यकता है, जो संसद से आना चाहिए।
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तेलंगाना में विधायकों के पाला बदलने पर सुप्रीम कोर्ट का सख्त निर्देश

सुप्रीम कोर्ट का आदेश

तेलंगाना की प्रमुख विपक्षी पार्टी भारत राष्ट्र समिति के 10 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने के मामले में विधानसभा के स्पीकर को सुप्रीम कोर्ट ने कड़ा निर्देश दिया है। सर्वोच्च न्यायालय ने कहा है कि स्पीकर को इन विधायकों की अयोग्यता पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। यह मामला एक साल से अधिक समय से लंबित है। नवंबर 2023 में हुए विधानसभा चुनावों में कांग्रेस ने पूर्ण बहुमत प्राप्त किया था। चुनाव के कुछ समय बाद, बीआरएस के विधायकों का कांग्रेस में शामिल होने का सिलसिला शुरू हुआ। यह एक सामान्य राजनीतिक परिघटना है, लेकिन इसे अवसरवादी राजनीति के रूप में देखा जा रहा है।


दक्षिण में अवसरवादी राजनीति

अवसरवादी राजनीति का असली उदाहरण दक्षिण भारत में देखने को मिलता है। 2023 से पहले बीआरएस का शासन था, और कई कांग्रेस नेता उस समय बीआरएस में शामिल हो गए थे। अब जब कांग्रेस सत्ता में आई है, तो बीआरएस के नेता भी कांग्रेस में शामिल हो रहे हैं। इस संदर्भ में, यह सवाल उठता है कि जब 10 विधायक बीआरएस छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए हैं, तो उनकी सदस्यता क्यों नहीं समाप्त की जानी चाहिए? दलबदल विरोधी कानून के अनुसार, बीआरएस के टूटने के लिए कम से कम 26 विधायकों का एक साथ आना आवश्यक है।


सुप्रीम कोर्ट की समय सीमा

सुप्रीम कोर्ट ने स्पीकर के लिए तीन महीने की समय सीमा निर्धारित की है। यदि स्पीकर विधायकों को अयोग्य ठहराते हैं, तो उनकी सीटें रिक्त होंगी और उपचुनाव होंगे। यदि नहीं, तो सुप्रीम कोर्ट में उनकी अयोग्यता पर सुनवाई होगी। यह देखना दिलचस्प होगा कि स्पीकर इस मामले में क्या तर्क प्रस्तुत करते हैं। यह सुनवाई महत्वपूर्ण हो सकती है और भविष्य में ऐसे मामलों के लिए एक समय सीमा तय करने का मार्ग प्रशस्त कर सकती है।


स्थायी समाधान की आवश्यकता

हालांकि, यह एक अस्थायी समाधान है। इस मुद्दे का स्थायी समाधान संसद से निकलना चाहिए। यदि संविधान में किसी विषय पर स्पष्टता नहीं है, तो संसद को इस पर कानून बनाना चाहिए। वर्तमान में, स्पीकर के लिए अयोग्यता की शिकायतों पर निर्णय लेने के लिए कोई समय सीमा नहीं है, जिससे कई बार सत्तारूढ़ दल इसका लाभ उठाते हैं। झारखंड विधानसभा में भी इसी तरह के मामले लंबे समय तक लम्बित रहे हैं।


सरकार की पहल की आवश्यकता

इसलिए, सरकार को दलबदल विरोधी कानून में संशोधन करने या नया कानून लाकर स्पीकर के लिए समय सीमा तय करने की आवश्यकता है। यदि सरकार इस दिशा में पहल करती है, तो विपक्ष को भी इसका समर्थन करना चाहिए। यदि ऐसा नहीं होता है, तो तेलंगाना का मामला भी महाराष्ट्र की तरह सुप्रीम कोर्ट के आदेश से सुलझ सकता है, लेकिन विवाद की संभावना हमेशा बनी रहेगी।