दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव: बांग्लादेश और पाकिस्तान का बढ़ता सहयोग
दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक संतुलन में बदलाव
दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक संतुलन एक बार फिर से बदलता हुआ नजर आ रहा है। पाकिस्तान और बांग्लादेश के बीच रक्षा और खुफिया सहयोग में तेजी आई है, जबकि ढाका के अंतरिम प्रमुख मोहम्मद यूनुस के हालिया कदमों ने भारत की पूर्वोत्तर सीमा पर कूटनीतिक तनाव को और बढ़ा दिया है। रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान ने ढाका में अपने उच्चायोग में एक विशेष ISI सेल की स्थापना की है। यह निर्णय पाकिस्तान के संयुक्त सैन्य प्रमुख जनरल साहिर शमशाद मिर्ज़ा की चार दिवसीय बांग्लादेश यात्रा के बाद लिया गया, जिसमें उन्होंने यूनुस और बांग्लादेश के शीर्ष सैन्य नेतृत्व से मुलाकात की।
संयुक्त खुफिया-साझाकरण ढांचे की स्थापना
इस मुलाकात में दोनों पक्षों ने संयुक्त खुफिया-साझाकरण ढांचे की स्थापना पर सहमति जताई, जो मुख्य रूप से बंगाल की खाड़ी और भारत की पूर्वी सीमा की निगरानी पर केंद्रित रहेगा। इसके तहत ISI अधिकारियों को ढाका उच्चायोग में तैनात करने की अनुमति दी गई है। इसके अलावा, पाकिस्तान ने बांग्लादेश को JF-17 लड़ाकू विमान, फतह रॉकेट सिस्टम, और सैन्य प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पेशकश की है। बदले में, ढाका ने पाकिस्तान के साथ संयुक्त नौसैनिक अभ्यास, रक्षा समझौते और तकनीकी सहयोग को मंजूरी दी है। यह सब उस समय हो रहा है जब शेख हसीना सरकार के पतन (अगस्त 2024) के बाद यूनुस के नेतृत्व में बांग्लादेश की विदेश नीति भारत से दूर और इस्लामाबाद व बीजिंग के करीब जाती दिख रही है।
भारत के खिलाफ संभावित साजिशें
रिपोर्टों के अनुसार, पाकिस्तान के सैन्य प्रमुख के साथ मुलाकात के दौरान यूनुस ने जो पुस्तक ‘Art of Triumph’ भेंट की, उसकी आवरण पर ऐसा विकृत मानचित्र छपा था जिसमें भारत के असम और पूर्वोत्तर राज्यों को "बांग्लादेश का हिस्सा" दर्शाया गया था। यह घटना ढाका-इस्लामाबाद संबंधों में गर्मजोशी के बीच ‘ग्रेटर बांग्लादेश’ की विचारधारा को बढ़ावा देने वाली मानी जा रही है। यह विचारधारा कुछ कट्टरपंथी समूहों द्वारा भारत के असम, त्रिपुरा, मेघालय और बंगाल के हिस्सों को "ऐतिहासिक बंगाल भूमि" मानने का समर्थन करती है।
यूनुस का विवादास्पद बयान
यूनुस का यह पहला विवाद नहीं है। अप्रैल 2025 में चीन यात्रा के दौरान उन्होंने भारत के पूर्वोत्तर को "landlocked" कहकर दावा किया था कि "हम ही इस क्षेत्र के सागर के एकमात्र संरक्षक हैं" और यह चीन की अर्थव्यवस्था के विस्तार के लिए "स्वाभाविक मार्ग" हो सकता है। उनके एक पूर्व सैन्य सलाहकार मेजर जनरल (सेवानिवृत्त) फ़ज़लुर रहमान ने सुझाव दिया था कि "यदि भारत पाकिस्तान पर हमला करे, तो बांग्लादेश को चीन के साथ मिलकर भारत के पूर्वोत्तर पर कब्ज़ा करना चाहिए।"
भारत के लिए नई चुनौतियाँ
इन घटनाओं से यह स्पष्ट होता है कि यूनुस सरकार की बयानबाज़ी भारत के उत्तर-पूर्व को कूटनीतिक रूप से अस्थिर करने की एक संभावित रणनीति के रूप में उभर रही है, जबकि दूसरी ओर ढाका पाकिस्तान और चीन के साथ अपनी सैन्य भागीदारी बढ़ा रहा है। शेख हसीना सरकार के पतन के बाद से बांग्लादेश की विदेश नीति में "भारत-केंद्रित" से "इस्लामाबाद-बीजिंग केंद्रित" झुकाव आया है।
भारत की रणनीति
भारत को इस उभरती परिस्थिति में तीन-स्तरीय रणनीति अपनानी चाहिए। पहली- यूनुस शासन से संवाद बनाए रखते हुए बांग्लादेशी जनता, सेना और मीडिया में भारत-विरोधी नैरेटिव को संतुलित करने का प्रयास करना चाहिए। दूसरा- पूर्वोत्तर राज्यों में इंटेलिजेंस-कोऑर्डिनेशन और बॉर्डर सर्विलांस को पुनर्गठित करना चाहिए। तीसरा- बंगाल की खाड़ी में BIMSTEC और QUAD देशों के साथ संयुक्त नौसैनिक उपस्थिति को बढ़ाना चाहिए।
निष्कर्ष
बांग्लादेश में यूनुस शासन के तहत हो रहे ये बदलाव केवल ढाका की आंतरिक राजनीति नहीं हैं, बल्कि दक्षिण एशिया की नई शक्ति-रेखाओं को परिभाषित कर रहे हैं। पाकिस्तान और चीन के साथ बांग्लादेश की बढ़ती निकटता से भारत को यह समझना होगा कि उसकी "पूर्व की सीमाएँ" भी उतनी ही संवेदनशील हैं जितनी पश्चिम की।
