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दिल्ली दंगों के मामले में शरजील इमाम और उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज

दिल्ली हाईकोर्ट ने शरजील इमाम और उमर खालिद की जमानत याचिकाएं खारिज कर दी हैं, जिन पर 2020 में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप है। कोर्ट ने कहा कि शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार है, लेकिन इसका दुरुपयोग नहीं होना चाहिए। जानें इस मामले में कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ और आगे की प्रक्रिया के बारे में।
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दिल्ली दंगों के मामले में शरजील इमाम और उमर खालिद की जमानत याचिका खारिज

दिल्ली दंगों का मामला

दिल्ली दंगों का मामला: दिल्ली उच्च न्यायालय ने 2 सितंबर को जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय के पूर्व छात्र शरजील इमाम और उमर खालिद की जमानत याचिकाओं को अस्वीकार कर दिया है। दोनों पर 2020 में दिल्ली में हुए दंगों की साजिश में शामिल होने का आरोप है। न्यायालय ने कहा कि नागरिकों को शांतिपूर्ण विरोध का अधिकार है, लेकिन इसका उपयोग हिंसा के लिए नहीं किया जा सकता।


जेल में बिताए गए वर्ष

शरजील इमाम को 25 अगस्त 2020 को गिरफ्तार किया गया था, जबकि उमर खालिद को 14 सितंबर 2020 को हिरासत में लिया गया। फरवरी 2020 में दिल्ली में भड़के दंगों में लगभग 50 लोगों की जान गई, कई घायल हुए और करोड़ों रुपये का नुकसान हुआ।


कोर्ट की महत्वपूर्ण टिप्पणियाँ

न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 19(1)(a) शांतिपूर्ण प्रदर्शन का अधिकार प्रदान करता है, लेकिन यह सीमाओं के भीतर होना चाहिए। यदि विरोध को अनियंत्रित रूप से करने की अनुमति दी जाती है, तो यह कानून-व्यवस्था को प्रभावित कर सकता है। न्यायालय ने यह भी कहा कि प्रदर्शन के नाम पर हिंसा और दंगे स्वीकार्य नहीं हैं और राज्य को ऐसी घटनाओं पर नियंत्रण रखना चाहिए।


प्रदर्शन की योजना

कोर्ट ने यह भी बताया कि CAA के पारित होने के बाद दोनों आरोपियों ने व्हाट्सएप ग्रुप बनाए, पर्चे बांटे और मुस्लिम बहुल क्षेत्रों में चक्का जाम करने की अपील की। उन पर आरोप है कि उन्होंने CAA और NRC को मुस्लिम विरोधी बताते हुए लोगों को भड़काया, जो साजिश की ओर इशारा करता है।


अनुपस्थिति का प्रभाव

हालांकि कोर्ट ने माना कि दंगों के समय दोनों की मौजूदगी नहीं थी, लेकिन यह उनकी साजिश में भूमिका को कम नहीं करता। यदि वे घटनाओं की योजना बनाने वाले प्रमुख षड्यंत्रकारियों में से थे, तो उनकी अनुपस्थिति आरोप की गंभीरता को कम नहीं करती।


ट्रायल में देरी

कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि ट्रायल में देरी स्वाभाविक है और आपराधिक प्रक्रिया में जल्दबाजी दोनों पक्षों के लिए हानिकारक हो सकती है। वर्तमान में मामला आरोप तय करने के चरण में है। न्यायालय ने कहा कि केवल लंबे समय तक जेल में रहने के कारण जमानत देना उचित नहीं है, खासकर जब मामला देश की एकता और संप्रभुता को चुनौती देने वाला हो।