दिल्ली हाईकोर्ट ने PM मोदी की डिग्री जानकारी का खुलासा करने से किया इनकार

दिल्ली हाईकोर्ट का महत्वपूर्ण निर्णय
PM मोदी की डिग्री का मामला: दिल्ली हाईकोर्ट ने सोमवार को मुख्य सूचना आयोग के उस आदेश को खारिज कर दिया, जिसमें कहा गया था कि सूचना के अधिकार (आरटीआई) के तहत दिल्ली विश्वविद्यालय को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की डिग्री की जानकारी प्रदान करनी होगी। जस्टिस सचिन दत्ता के अनुसार, शैक्षणिक रिकॉर्ड और डिग्री का खुलासा करना आवश्यक नहीं है। अब दोनों पक्ष इस मामले को सुप्रीम कोर्ट में ले जाने का विचार कर सकते हैं।
कानूनी लड़ाई का एक दशक
प्रधानमंत्री मोदी के शैक्षणिक रिकॉर्ड के खुलासे के लिए यह कानूनी लड़ाई लगभग दस वर्षों से चल रही है। 1978 में दिल्ली विश्वविद्यालय से बीए की परीक्षा पास करने वाले सभी छात्रों का रिकॉर्ड, जिस वर्ष प्रधानमंत्री मोदी ने अपने चुनावी हलफनामे में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने का उल्लेख किया था, की मांग की गई थी। यह मामला 2016 में आरटीआई आवेदन के माध्यम से शुरू हुआ। विश्वविद्यालय ने तीसरे पक्ष की जानकारी साझा न करने के नियमों का हवाला देते हुए इसे अस्वीकार कर दिया। हालांकि, मुख्य सूचना आयोग (सीआईसी) ने इस तर्क को मान्यता नहीं दी और दिसंबर 2016 में डीयू को रिकॉर्ड की जांच की अनुमति दी।
यूनिवर्सिटी का हाईकोर्ट में अपील
सीआईसी के आदेश के अनुसार, किसी भी सार्वजनिक व्यक्ति, विशेषकर प्रधानमंत्री की शैक्षणिक योग्यताएं पारदर्शी होनी चाहिए। सीआईसी ने यह भी कहा कि इस जानकारी वाला रजिस्टर एक सार्वजनिक दस्तावेज माना जाएगा। इसी आदेश के खिलाफ विश्वविद्यालय ने हाईकोर्ट में अपील की, जहां भारत के सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता और उनकी कानूनी टीम ने विश्वविद्यालय का प्रतिनिधित्व किया। विश्वविद्यालय ने तर्क दिया कि हजारों छात्रों का निजता का अधिकार जनता के जानने के अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण है।
सार्वजनिक हित बनाम निजता
मेहता ने कहा कि डेटा का खुलासा एक खतरनाक मिसाल कायम करेगा, जिससे सार्वजनिक प्राधिकरणों के कार्यों में बाधा आ सकती है। उन्होंने यह भी कहा कि विश्वविद्यालय अदालत के सामने रिकॉर्ड पेश करने के लिए तैयार है, लेकिन इसे सार्वजनिक नहीं किया जाना चाहिए। दूसरी ओर, रिकॉर्ड मांगने वाले कार्यकर्ताओं ने तर्क दिया कि आरटीआई अधिनियम आवेदक की पहचान या इरादे पर विचार नहीं करता है। उन्होंने कहा कि डिग्री राज्य द्वारा दी गई योग्यता है और यह कोई निजी मामला नहीं है। अदालत ने 27 फरवरी को अपना निर्णय सुरक्षित रखा था।