धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री का जातिवाद पर कड़ा बयान, नवंबर में करेंगे पदयात्रा

इटावा में मुंडन की घटना पर प्रतिक्रिया
हाल ही में उत्तर प्रदेश के इटावा में एक कथावाचक के जबरन मुंडन कराने की घटना ने देशभर में सामाजिक और धार्मिक चर्चाओं को जन्म दिया है। इस पर बागेश्वर धाम के पीठाधीश्वर धीरेंद्र कृष्ण शास्त्री ने भी अपनी राय व्यक्त की है। उन्होंने भिवंडी से एक वीडियो संदेश में कहा कि 25 दिन की विदेश यात्रा के बाद लौटने पर उन्होंने इस घटना की कड़ी निंदा की और जातिवाद तथा राजनीतिक दृष्टिकोण पर भी अपनी चिंता व्यक्त की।
न्याय का अधिकार केवल अदालत को
धीरेंद्र शास्त्री ने इस घटना की आलोचना करते हुए कहा कि यदि कथावाचक ने कोई गलती की है, तो उसका समाधान न्यायालय के माध्यम से होना चाहिए, न कि भीड़ के हाथों। उन्होंने स्पष्ट किया कि किसी को भी न्यायाधीश बनने का अधिकार नहीं है और सजा देने का कार्य केवल अदालत का है। इसके साथ ही, उन्होंने राजनेताओं को चेतावनी दी कि ऐसे मामलों में राजनीति न करें, अन्यथा इससे समाज में और अधिक विष फैल जाएगा। उनका मानना है कि यदि कानून पर विश्वास किया जाता, तो समाज में आक्रोश नहीं फैलता।
दिल्ली से वृंदावन तक पदयात्रा का ऐलान
धीरेंद्र शास्त्री ने यह भी कहा कि सनातन धर्म किसी विशेष जाति का नहीं है। उन्होंने वेदव्यास, बाल्मीकि, रैदास, कबीर और मीरा बाई जैसे महान व्यक्तित्वों का उदाहरण देते हुए कहा कि उनकी वाणी ही उनकी पहचान है, जाति नहीं। इसी संदर्भ में, उन्होंने 7 नवंबर से 16 नवंबर तक दिल्ली से वृंदावन तक पदयात्रा करने की योजना की घोषणा की है। इस यात्रा का उद्देश्य जातिवाद और ऊंच-नीच से ऊपर उठकर राष्ट्रवाद और सनातन की एकता को बढ़ावा देना है। उनका कहना है कि जब तक हिंदू समाज एकजुट नहीं होगा, तब तक भारत को हिंदू राष्ट्र बनाना कठिन होगा।