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नाटो देशों का रक्षा खर्च में समानता लाने का बड़ा कदम

नाटो महासचिव मार्क रुटे ने घोषणा की है कि नाटो देश अगले कुछ वर्षों में खरबों डॉलर का निवेश करेंगे, जिससे अमेरिका और अन्य सहयोगियों के बीच रक्षा खर्च में समानता लाई जा सके। यह कदम न केवल गठबंधन की सामूहिक सुरक्षा को मजबूत करेगा, बल्कि वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक शक्ति को भी बढ़ावा देगा। रुटे ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की सराहना की, जिन्होंने नाटो सहयोगियों से रक्षा खर्च बढ़ाने की मांग की थी। जानें इस नई रणनीति के बारे में और क्या बदलाव आएंगे।
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नाटो देशों का रक्षा खर्च में समानता लाने का बड़ा कदम

नाटो महासचिव का नया दृष्टिकोण

नाटो महासचिव जेन्स स्टोलटेनबर्ग के उत्तराधिकारी मार्क रुटे ने हाल ही में घोषणा की है कि नाटो सदस्य देश अगले कुछ वर्षों में खरबों डॉलर का निवेश करेंगे। इस पहल का उद्देश्य अमेरिका और अन्य सहयोगी देशों के बीच रक्षा खर्च को समान स्तर पर लाना है, जिससे गठबंधन की सामूहिक सुरक्षा को और मजबूती मिलेगी।


अमेरिका का रक्षा खर्च का बोझ

अमेरिका ने लंबे समय तक खर्च का बोझ झेला

रुटे ने कहा, “एक सहयोगी - संयुक्त राज्य अमेरिका - ने इस प्रतिबद्धता का अधिकांश बोझ उठाया है।” उन्होंने यह भी कहा कि अब सभी नाटो देशों को अपनी जिम्मेदारियों को निभाना चाहिए और रक्षा खर्च में योगदान बढ़ाना चाहिए। यह कदम न केवल गठबंधन की एकता को दर्शाता है, बल्कि वैश्विक सुरक्षा चुनौतियों का सामना करने के लिए सामूहिक शक्ति को भी बढ़ावा देगा।


ट्रंप का योगदान

ट्रंप को दिया श्रेय

रुटे ने अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की भूमिका की सराहना करते हुए कहा, “प्रिय डोनाल्ड... आपने यह बदलाव संभव बनाया।” उन्होंने बताया कि ट्रंप ने नाटो सहयोगियों से रक्षा खर्च बढ़ाने की लगातार मांग की थी, जिसके परिणामस्वरूप कई देशों ने अपने रक्षा बजट में वृद्धि की है। रुटे के अनुसार, यह निवेश नाटो की रणनीतिक तैयारियों को मजबूत करेगा और भविष्य की चुनौतियों के लिए गठबंधन को बेहतर ढंग से तैयार करेगा।


नाटो की नई रणनीति

नाटो की नई रणनीति

इस निवेश योजना के अंतर्गत, नाटो देश उन्नत हथियार प्रणालियों, साइबर सुरक्षा और सैन्य बुनियादी ढांचे में भारी निवेश करेंगे। रुटे ने कहा कि यह कदम वैश्विक भू-राजनीतिक तनावों के बीच नाटो की सामरिक स्थिति को और मजबूत करेगा। यह योजना सभी सदस्य देशों के बीच रक्षा खर्च की असमानता को कम करने और गठबंधन की एकता को बढ़ाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है।