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नीतीश कुमार का सात दिन का मुख्यमंत्री कार्यकाल: बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़

बिहार की राजनीति में नीतीश कुमार का सात दिन का मुख्यमंत्री कार्यकाल एक महत्वपूर्ण घटना है। यह न केवल उनके राजनीतिक सफर का हिस्सा है, बल्कि इसने बिहार की जनता और सत्ता के समीकरणों पर गहरा प्रभाव डाला। जानें कैसे नीतीश ने लालू प्रसाद यादव के शासन के खिलाफ अपनी राजनीतिक यात्रा शुरू की और कैसे उनका संक्षिप्त कार्यकाल उन्हें भविष्य में कई बार मुख्यमंत्री बनने के लिए प्रेरित किया।
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नीतीश कुमार का संक्षिप्त मुख्यमंत्री कार्यकाल

बिहार की राजनीति में कई दिलचस्प घटनाएं हुई हैं, लेकिन 2000 में नीतीश कुमार का केवल सात दिनों तक मुख्यमंत्री रहना एक विशेष चर्चा का विषय है। यह घटना न केवल एक नेता की राजनीतिक यात्रा का हिस्सा है, बल्कि इसने बिहार की जनता, गठबंधनों की रणनीतियों और सत्ता के समीकरणों पर भी गहरा प्रभाव डाला।


90 के दशक के मध्य में जब लालू प्रसाद यादव का बिहार में वर्चस्व था, नीतीश कुमार ने उनसे अलग रास्ता अपनाने का निर्णय लिया। 1994 में उन्होंने जॉर्ज फर्नांडिस के साथ मिलकर समता पार्टी की स्थापना की। यह कदम लालू के शासन के खिलाफ असहमति और बदलाव की आवश्यकता को दर्शाता था। हालांकि, 1995 के विधानसभा चुनाव में उन्हें जनता का मजबूत समर्थन नहीं मिला और समता पार्टी केवल 7 सीटों पर सिमट गई।


2000 में चुनावी माहौल बदला और समता पार्टी ने बीजेपी के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का निर्णय लिया। इस गठबंधन ने कुल 122 सीटें जीतीं, जिसमें समता पार्टी को 34 और बीजेपी को 67 सीटें मिलीं। हालांकि, आरजेडी 124 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनी, लेकिन किसी भी गठबंधन के पास सरकार बनाने के लिए आवश्यक 163 सीटें नहीं थीं।


केंद्र में एनडीए की सरकार होने के कारण, बिहार में भी एनडीए की सरकार बनाने की कोशिश की गई। नीतीश कुमार को 3 मार्च 2000 को मुख्यमंत्री पद की शपथ दिलाई गई, लेकिन उन्हें बहुमत साबित करने के लिए आवश्यक विधायकों की संख्या में कमी का सामना करना पड़ा। निर्दलीय विधायकों का समर्थन जुटाने की कोशिशें विफल रहीं और अंततः 10 मार्च को उन्होंने इस्तीफा दे दिया। यह कार्यकाल केवल सात दिनों का रहा।


इस घटनाक्रम ने बिहार के मतदाताओं को यह सिखाया कि केवल गठबंधन और रणनीति से सरकार नहीं चल सकती, बल्कि जनसमर्थन और विश्वास भी आवश्यक हैं। नीतीश के इस्तीफे के बाद आरजेडी ने राबड़ी देवी को फिर से मुख्यमंत्री बनाया, जो पूरे पांच साल तक सत्ता में रहीं।


हालांकि यह कार्यकाल नीतीश कुमार के लिए सबसे छोटा था, लेकिन इसने उन्हें सत्ता की वास्तविकताओं, गठबंधन की जटिलताओं और जनता के मूड को समझने का एक महत्वपूर्ण अनुभव दिया। इसके बाद उन्होंने अपनी राजनीतिक स्थिति को मजबूत किया और कई बार बिहार के मुख्यमंत्री बने।