नीतीश कुमार: बिहार की राजनीति के चाणक्य की अनोखी यात्रा
नीतीश कुमार का राजनीतिक सफर
पटनाः बिहार की राजनीति में जितनी जटिलताएँ और उतार-चढ़ाव हैं, नीतीश कुमार की कहानी उनमें सबसे अलग है। एक आंदोलनकारी से लेकर दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने तक का उनका सफर न केवल राजनीतिक है, बल्कि धैर्य, रणनीति और जनविश्वास का प्रतीक भी है। कई बार समीकरण बदले, विचारधाराएँ बदलीं, साथी और विरोधी दोनों बदले, लेकिन एक चीज हमेशा स्थिर रही - बिहार की राजनीति पर नीतीश कुमार का गहरा प्रभाव।
राजनीतिक सुनामी का प्रभाव
2025 का चुनाव परिणाम केवल एक जीत नहीं, बल्कि उस सुनामी का प्रतीक है जिसने विपक्ष की रणनीतियों को हिला दिया। यह जीत दर्शाती है कि जब अनुभव, विश्वास और रणनीति एक नेता में समाहित होते हैं, तो परिणाम ऐतिहासिक बनते हैं। 2005 से 2025 तक के आंकड़ों पर नजर डालें तो कभी 88, कभी 115, कभी 43 सीटें नीतीश का ग्राफ ऊपर-नीचे होता रहा, लेकिन 85 सीटों की जीत ने फिर से साबित किया कि उनका प्रभाव अभी भी मजबूत है।
गांव के 'मुन्ना' से बिहार के चाणक्य तक
मार्च 1951 में बख्तियारपुर में जन्मे नीतीश कुमार को घर में 'मुन्ना' कहा जाता था। उनके पिता आयुर्वेदिक डॉक्टर और कांग्रेस से जुड़े नेता थे। इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग की पढ़ाई के दौरान उन्होंने छात्र राजनीति में कदम रखा और 1972 में स्टूडेंट यूनियन के अध्यक्ष बने। इंजीनियरिंग की नौकरी छोड़कर उन्होंने जेपी आंदोलन का रास्ता अपनाया, जिसने उनके राजनीतिक जीवन की नींव रखी।
राजनीति में शुरुआती चुनौतियाँ
1977, 1980 और 1985 में तीन बार विधानसभा चुनाव हारने के बाद नीतीश लगभग राजनीति छोड़ने वाले थे। इस कठिन समय में उनकी पत्नी ने उन्हें ₹20,000 देकर फिर से प्रयास करने के लिए प्रेरित किया, और यही चुनाव उनकी पहली जीत का कारण बना। 1989 में वे लोकसभा पहुंचे और राष्ट्रीय राजनीति में कदम रखा।
लालू प्रसाद से दोस्ती और दूरी
1990 के दशक में नीतीश लालू यादव के करीबी सहयोगी थे। लेकिन भ्रष्टाचार और प्रशासनिक गिरावट के कारण उनका मोहभंग हुआ और दोनों अलग हो गए। 1995 में नीतीश ने नई पार्टी बनाई, लेकिन उन्हें बड़ी सफलता नहीं मिली। 2000 में वे पहली बार लालू के समकक्ष नेता के रूप में उभरे।
सात दिन की सरकार
साल 2000 में नीतीश पहली बार मुख्यमंत्री बने, लेकिन उन्हें महज सात दिन में इस्तीफा देना पड़ा। हालांकि, यह छोटा कार्यकाल उन्हें एक बड़े नेता के रूप में स्थापित कर गया।
नीतीश युग की शुरुआत
2005 और 2010 के चुनावों में नीतीश ने सुशासन, कानून व्यवस्था और विकास के आधार पर ऐतिहासिक सफलता प्राप्त की। सड़क, शिक्षा, महिला सशक्तिकरण और सुरक्षा के क्षेत्र में उनका मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर चर्चा का विषय बना।
मोदी से टकराव
2013 में नरेंद्र मोदी के विरोध में उन्होंने बीजेपी से नाता तोड़ा, 2015 में आरजेडी से हाथ मिलाया, फिर 2017 में वापस बीजेपी के साथ आए। 2022 में फिर महागठबंधन और 2024 में दोबारा बीजेपी के साथ... नीतीश की राजनीति हमेशा 'कब, किसके साथ' के सवालों के केंद्र में रही है।
2025 में नीतीश का पुनरुत्थान
2025 के चुनाव में नीतीश कुमार ने यह साबित कर दिया कि बिहार की राजनीति में उनका प्रभाव अभी भी अटूट है। एनडीए को मजबूती मिली और वे दसवीं बार मुख्यमंत्री बनने की तैयारी में हैं, जो अपने आप में एक ऐतिहासिक रिकॉर्ड है।
