नेपाल और बांग्लादेश में युवा आंदोलन: सत्ता परिवर्तन की नई लहर

पड़ोसी देशों में राजनीतिक उथल-पुथल
भारत के पड़ोसी देश नेपाल और बांग्लादेश इस समय गंभीर राजनीतिक संकट का सामना कर रहे हैं। हाल ही में, नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने अपने पद से इस्तीफा दिया। इससे पहले, बांग्लादेश की प्रधानमंत्री शेख हसीना को भी सत्ता छोड़ने के लिए मजबूर होना पड़ा। इन दोनों देशों में युवा वर्ग के नेतृत्व में हुए आंदोलनों ने सत्ता परिवर्तन की दिशा में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
अवामी लीग का पतन
क्रांति की जननी पार्टी सत्ता से बेदखल
शेख हसीना की पार्टी अवामी लीग भी जन आक्रोश का शिकार बनी। छात्रों और युवाओं ने सरकार पर निरंकुशता और भेदभावपूर्ण नीतियों का आरोप लगाया। "स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन" नामक छात्र संगठन ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया। विरोध का मुख्य मुद्दा आरक्षण नीति थी, जिसके तहत स्वतंत्रता सेनानियों के वंशजों को सरकारी नौकरियों में प्राथमिकता दी जाती थी। नई पीढ़ी ने इसे अन्यायपूर्ण मानते हुए विरोध तेज कर दिया। सरकारी दमन में 1,500 से अधिक प्रदर्शनकारी मारे गए, लेकिन आंदोलन जारी रहा। अंततः शेख हसीना को इस्तीफा देकर देश छोड़ना पड़ा।
सोशल मीडिया पर प्रतिबंध का प्रभाव
सोशल मीडिया प्रतिबंध से उठी लहर
नेपाल में विरोध की शुरुआत सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के खिलाफ हुई। जेनरेशन जेड ने इस आंदोलन का नेतृत्व किया, जो जल्द ही भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद के खिलाफ बड़े जनआंदोलन में बदल गया।
प्रदर्शनकारियों ने नेताओं पर नेपोकिड्स (Nepokids) यानी सत्ताधारियों के बच्चों और रिश्तेदारों को तरजीह देने का आरोप लगाया। आम जनता ने महंगाई और बेरोजगारी को भी मुद्दा बनाया। पुलिस और सेना की गोलीबारी में 19 लोगों की जान गई, लेकिन यह दमन भी आंदोलन को रोक नहीं सका। नतीजतन, प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली को भी इस्तीफा देना पड़ा।
युवाओं की निर्णायक भूमिका
युवाओं की निर्णायक भूमिका
दोनों देशों में आंदोलनों की अगुवाई युवाओं ने की। बांग्लादेश में छात्र संगठनों ने शासन की नीतियों को चुनौती दी, जबकि नेपाल में सोशल मीडिया की नई पीढ़ी ने सड़कों पर उतरकर अपनी आवाज उठाई। यह स्पष्ट हो गया है कि युवा शक्ति अब दक्षिण एशिया की राजनीति में एक महत्वपूर्ण बदलावकारी कारक बन चुकी है।
आंदोलनों का दमन
क्रूर बल से नहीं थमा आक्रोश
बांग्लादेश और नेपाल की सरकारों ने आंदोलनकारियों पर कठोर कार्रवाई की, जिसमें सैकड़ों लोगों की जान गई। लेकिन इन मौतों ने आंदोलनों को और तेज कर दिया। ढाका में प्रदर्शनकारियों ने प्रधानमंत्री आवास पर धावा बोल दिया, जबकि काठमांडू में सरकारी इमारतों पर कब्ज़ा कर लिया गया। अंततः दोनों प्रधानमंत्रियों को अपने पद छोड़ने के अलावा कोई विकल्प नहीं मिला।