नेपाल में राजनीतिक संकट: प्रधानमंत्री ओली के इस्तीफे के बाद प्रदर्शन और हिंसा

नेपाल में राजनीतिक अस्थिरता का दौर
नेपाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ चल रहे प्रदर्शनों के चलते प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली के इस्तीफे के बाद राजनीतिक स्थिति में अस्थिरता आ गई है। सोशल मीडिया पर प्रतिबंध के बाद यह आंदोलन हिंसक हो गया है, जिसमें अब तक 30 लोगों की जान जा चुकी है और 1,033 लोग घायल हुए हैं। 2008 में राजशाही के अंत के बाद से यह नेपाल के लोकतंत्र के लिए सबसे बड़ा संकट बन गया है। इस स्थिति ने राजनीतिक अभिजात वर्ग और युवा पीढ़ी के बीच की गहरी दरार को उजागर किया है। आने वाले कुछ हफ्ते यह तय करेंगे कि क्या नेपाल के नेता प्रदर्शनकारियों के साथ संवाद स्थापित कर पाएंगे, संवैधानिक बदलाव कर सकेंगे, या फिर देश और अधिक अस्थिरता की ओर बढ़ेगा, जिसमें नए चुनाव भी शामिल हो सकते हैं।
प्रदर्शनकारियों का समर्थन
नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री के. आई. सिंह के पोते यशवंत शाह ने हाल ही में सरकार पर आरोप लगाया कि वह विरोध प्रदर्शनों को सही तरीके से नियंत्रित नहीं कर पाई। उन्होंने कहा कि प्रदर्शन शांतिपूर्ण थे और इन्हें व्यापक जन समर्थन प्राप्त था। शाह ने बताया कि आठ सितंबर को काठमांडू में आयोजित प्रदर्शन का आयोजन एक छात्र संगठन ने किया था, जिसमें बड़ी संख्या में लोग शामिल हुए थे। यह प्रदर्शन भ्रष्टाचार के खिलाफ था, और लंबे समय से चल रहे कई घोटालों के खिलाफ लोगों में आक्रोश था। शाह के अनुसार, इस प्रदर्शन को शुरू में युवा पीढ़ी, जिसे 'जेन-ज़ेड' कहा जाता है, का समर्थन मिला, और बाद में 'जेन-एक्स' के साथ-साथ आम जनता ने भी इसका समर्थन किया। 'जेन-ज़ेड' का तात्पर्य उन लोगों से है, जो 1997 से 2012 के बीच पैदा हुए हैं।