न्यायपालिका में भ्रष्टाचार: जस्टिस वर्मा के मामले पर उठते सवाल
न्यायपालिका में विश्वास और भ्रष्टाचार का मुद्दा
Bharat Ek Soch : हाल ही में सुप्रीम कोर्ट के बाहर एक व्यक्ति की तस्वीर सामने आई, जिसमें वह आंखें बंद कर हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहा था। उसके पास चप्पलें उतरी हुई थीं, जैसे वह किसी मंदिर के द्वार पर खड़ा हो। दरअसल, उस व्यक्ति का मामला अदालत में सुनवाई के लिए था। भारत के लोकतंत्र में आम जनता का सबसे अधिक विश्वास न्यायपालिका पर है। हालांकि, हाल में जस्टिस यशवंत वर्मा के घर से मिले नोटों के ढेर ने कई सवाल खड़े कर दिए हैं। उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने पूछा है कि अगर ऐसा अपराध हुआ है, तो दंड क्यों नहीं मिला? चीफ जस्टिस बीआर गवई का कहना है कि न्यायपालिका को न केवल इंसाफ करना चाहिए, बल्कि ऐसा दिखना भी चाहिए कि वह सच के साथ खड़ी है। इस मुद्दे पर मानसून सत्र में चर्चा होने की संभावना है, खासकर जस्टिस वर्मा के खिलाफ महाभियोग पर।
जस्टिस वर्मा का कैश कांड
इस साल 14 मार्च को, जब पूरा देश होली मना रहा था, दिल्ली के लुटियन जोन में जस्टिस यशवंत वर्मा के सरकारी आवास में आग लग गई। आग बुझाने वाले फायरकर्मियों ने बोरों में भरे नोटों के जले बंडल देखे। यह तस्वीरें सोशल मीडिया पर वायरल हो गईं। इसके बाद जस्टिस वर्मा का ट्रांसफर इलाहाबाद हाईकोर्ट कर दिया गया। सवाल यह उठता है कि अगर किसी आम आदमी के घर से ऐसे नोट मिलते, तो पुलिस का व्यवहार क्या होता? क्या न्यायपालिका में ऐसा तंत्र नहीं होना चाहिए, जिससे गंभीर आरोपों के बाद जज खुद नैतिकता के आधार पर अलग हो जाएं?
भ्रष्टाचार के खिलाफ आवाज उठाने की आवश्यकता
यदि किसी के साथ अन्याय होता है, तो वह अदालत का दरवाजा खटखटा सकता है। लेकिन, अगर किसी का मामला वर्षों से लटका हुआ है, तो वह कहां जाएगा? उपराष्ट्रपति धनखड़ ने कहा कि तीन महीने से अधिक समय बीत चुका है और जांच शुरू नहीं हुई। क्या यह दर्शाता है कि ज्यूडिशियरी के सामने सरकार कितनी लाचार है?
महाभियोग की प्रक्रिया और न्यायपालिका की स्वतंत्रता
उपराष्ट्रपति ने सवाल उठाया कि कैश कांड के सामने आने के बाद भी कार्रवाई क्यों नहीं हुई? संविधान में जजों को हटाने की प्रक्रिया को कठिन बनाया गया है, ताकि वे बिना किसी दबाव के फैसले ले सकें। लेकिन, क्या यह व्यवस्था पूरी तरह से प्रभावी है? संसद में महाभियोग प्रस्ताव लाने की तैयारी है। क्या सरकार जस्टिस वर्मा को महाभियोग के जरिए हटा पाएगी?
कानून के जानकारों की दलीलें
कानून के जानकार मानते हैं कि आम आदमी और जज के लिए एक समान प्रक्रिया नहीं हो सकती। जजों को समाज के ताकतवर लोगों के खिलाफ फैसले देने होते हैं। अमेरिका और ब्रिटेन में भी जजों को हटाने के लिए महाभियोग की प्रक्रिया अपनाई जाती है। भारतीय न्यायपालिका में कॉलेजियम सिस्टम को पारदर्शिता की कमी और भाई-भतीजावाद के आरोपों का सामना करना पड़ता है।
कॉलेजियम व्यवस्था की खामियां
चीफ जस्टिस बीआर गवई ने कॉलेजियम सिस्टम में खामियों को स्वीकार किया है, लेकिन उन्होंने जजों को बाहरी दबाव से मुक्त रखने की आवश्यकता पर जोर दिया। 2014 में मोदी सरकार ने नेशनल ज्यूडिशियल अपॉइंटमेंट कमीशन एक्ट लाया, लेकिन इसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया।
न्यायपालिका में सुधार की आवश्यकता
कानून के जानकारों का मानना है कि न्यायपालिका की स्वतंत्रता के लिए जरूरी है कि जजों की नियुक्ति की प्रक्रिया में सरकार की भूमिका न्यूनतम हो। जजों को अपनी संपत्ति सार्वजनिक करनी चाहिए और रिटायरमेंट के बाद खुद का Cooling Period तय करना चाहिए। न्यायपालिका को अपनी कमियों पर आत्ममंथन करना चाहिए, ताकि जनता का विश्वास बना रहे।
न्याय की उम्मीद
आज के डिजिटल युग में, लोग अदालतों से त्वरित न्याय की उम्मीद कर रहे हैं। न्यायपालिका को अपनी कार्यप्रणाली में सुधार करना होगा, ताकि आम आदमी को न्याय मिल सके।