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पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल में उपचुनाव के नतीजे: कांग्रेस को बड़ा झटका

पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल में हाल ही में हुए उपचुनाव के परिणामों ने कांग्रेस पार्टी को बड़ा झटका दिया है। गुजरात में बीजेपी और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट जीती, जबकि लुधियाना पश्चिम सीट आम आदमी पार्टी के खाते में गई। कांग्रेस के भीतर गुटबाजी के संकेत भी स्पष्ट हो गए हैं, जिससे पार्टी की स्थिति और कमजोर हुई है। जानें इस राजनीतिक उथल-पुथल के पीछे की कहानी और इसके संभावित प्रभाव।
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उपचुनाव के परिणाम

पंजाब, गुजरात और पश्चिम बंगाल में पांच विधानसभा सीटों पर हुए उपचुनाव के परिणाम सामने आ गए हैं। गुजरात में, सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) और आम आदमी पार्टी ने एक-एक सीट पर जीत हासिल की है। वहीं, पंजाब की लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट भी आम आदमी पार्टी के खाते में गई है। कांग्रेस पार्टी के लिए यह परिणाम एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिसने इन राज्यों में विधानसभा चुनावों में जीत का दावा किया था।


कांग्रेस में गुटबाजी के संकेत भी स्पष्ट हो गए हैं। गुजरात कांग्रेस के अध्यक्ष शक्ति सिंह ने हार की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए अपने पद से इस्तीफा दे दिया है। पंजाब से भी इस्तीफे की खबरें आई हैं। लुधियाना पश्चिम विधानसभा सीट पर कांग्रेस के उम्मीदवार भारत भूषण आशु ने नतीजों के कुछ घंटों बाद ही पार्टी के कार्यकारी अध्यक्ष पद से इस्तीफा देने की घोषणा की।


भारत भूषण आशु ने अपनी हार की जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दिया है। उन्होंने कहा कि उन्होंने पार्टी नेतृत्व से चुनाव प्रचार के लिए अपनी टीम मांगी थी। आशु ने चुनाव में अपनी टीम के साथ पूरी मेहनत की, लेकिन हार का सामना करना पड़ा। उन्होंने हार पर खेद व्यक्त किया और इस्तीफा दिया, लेकिन क्या यह केवल हार का परिणाम है?


उनके इस्तीफे के पीछे गुटबाजी और पार्टी की कमजोर स्थिति भी एक कारण मानी जा रही है। भारत भूषण आशु पंजाब कांग्रेस के पुराने नेताओं में से एक हैं और उनके अमरिंदर सिंह राजा वडिंग और प्रताप सिंह बाजवा के साथ अच्छे संबंध नहीं हैं।


यह भी कहा जा रहा है कि आशु ने कांग्रेस नेतृत्व से स्पष्ट रूप से कहा था कि प्रदेश अध्यक्ष और विपक्ष के नेता उनके चुनाव प्रचार से दूर रहें। हालांकि, चुनाव में उनकी हार ने उनके कद पर नकारात्मक प्रभाव डाला है।


गुजरात में भी कांग्रेस की स्थिति खराब है। शक्ति सिंह का समर्थन करने वाले नेताओं का अपना गुट है, जबकि पूर्व मुख्यमंत्री माधव सिंह सोलंकी और अहमद पटेल के समर्थकों के भी अलग-अलग गुट हैं। इन गुटों के बीच की खींचतान ने पार्टी की एकता को कमजोर किया है। राहुल गांधी ने गुजरात में पार्टी की स्थिति सुधारने के लिए कई बार दौरा किया है, लेकिन आंतरिक विवादों को सुलझाने में उन्हें सफलता नहीं मिली है।