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पश्चिम बंगाल में अस्मिता का चुनावी मुद्दा: वंदे मातरम और जन गण मन का विवाद

पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान अस्मिता का मुद्दा हमेशा से महत्वपूर्ण रहा है। इस बार वंदे मातरम और जन गण मन के बीच विवाद ने राजनीतिक माहौल को और गरमा दिया है। भाजपा और केंद्र सरकार वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, जबकि ममता बनर्जी के नेतृत्व में इस मुद्दे को लेकर नई चर्चाएँ उठ रही हैं। जानें इस विवाद के पीछे की कहानी और इसके राजनीतिक प्रभाव के बारे में।
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पश्चिम बंगाल में अस्मिता का चुनावी मुद्दा: वंदे मातरम और जन गण मन का विवाद

पश्चिम बंगाल में अस्मिता का सवाल

पश्चिम बंगाल में चुनावों के दौरान अस्मिता का मुद्दा हमेशा से उठता रहा है। हर चुनाव से पहले संस्कृति और पहचान पर चर्चा होती है। उदाहरण के लिए, 2021 के चुनाव में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुदेव रविंद्रनाथ टैगोर की तरह दाढ़ी रखी थी और इसी रूप में प्रचार किया। भाजपा ने ईश्वरचंद्र विद्यासागर के सम्मान का मुद्दा भी उठाया, लेकिन इसका कोई खास लाभ नहीं मिला। ममता बनर्जी ने बाहरी बनाम बांग्ला के मुद्दे को उठाकर चुनाव जीत लिया। पिछली बार 'जय श्रीराम' और 'जय मां काली' का मुद्दा भी अस्मिता से जुड़ा था।


वंदे मातरम और जन गण मन का विवाद

इस बार चुनाव से पहले जगन्नाथ धाम का विवाद चर्चा में रहा। ममता बनर्जी ने दीघा में जगन्नाथ मंदिर का उद्घाटन किया, जिसके नामकरण पर विवाद उत्पन्न हुआ। अब वंदे मातरम और जन गण मन के बीच विवाद शुरू हो गया है। भाजपा और केंद्र सरकार वंदे मातरम की रचना के 150 साल पूरे होने का जश्न मना रहे हैं, जिसके तहत दिल्ली में एक बड़ा कार्यक्रम आयोजित किया गया। वहीं, भाजपा के एक नेता ने जन गण मन की रचना को इंग्लैंड के राजा के सम्मान में बताया, लेकिन बाद में उन्होंने अपनी बात वापस ले ली। इस बीच, मुस्लिम नेताओं जैसे अबू आजमी और जिया उर रहमान बर्क ने वंदे मातरम गाने से इनकार कर विवाद को और बढ़ा दिया है। अब ममता बनर्जी को इस मुद्दे में फंसाने की कोशिश की जा रही है।