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पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा की थीम और विधानसभा चुनाव का प्रभाव

पश्चिम बंगाल में आगामी विधानसभा चुनावों के मद्देनजर दुर्गापूजा की तैयारियों में खासा ध्यान दिया गया है। इस बार के पंडालों की थीम बांग्ला अस्मिता और प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न को उजागर कर रही है। ममता बनर्जी की सरकार ने पंडाल निर्माण के लिए अधिक धनराशि प्रदान की है, जो चुनावी रणनीति का हिस्सा है। भाजपा का नैरेटिव इस बार कमजोर पड़ता नजर आ रहा है, जिससे ममता बनर्जी को चुनावी लाभ मिल सकता है। जानें इस बार के पंडालों की थीम और उनके पीछे के संदेश के बारे में।
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पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा की थीम और विधानसभा चुनाव का प्रभाव

दुर्गापूजा की तैयारी और चुनावी संदर्भ

पश्चिम बंगाल में अगले वर्ष विधानसभा चुनाव होने वाले हैं, और इस बार दुर्गापूजा का आयोजन चुनावी दृष्टिकोण से किया गया है। हालांकि, इस बार बारिश ने भी अपनी छाया डाली। ममता बनर्जी की सरकार ने हर पंजीकृत दुर्गापूजा समिति को पंडाल निर्माण के लिए पहले से अधिक धनराशि प्रदान की है। यह केवल बंगाल तक सीमित नहीं है; बिहार में भी सरकार ने दुर्गापूजा के दौरान शहरों की सफाई और सजावट के लिए अतिरिक्त फंड भेजे हैं, क्योंकि वहां अगले महीने चुनाव होने वाले हैं। यदि पश्चिम बंगाल में इस बार के दुर्गापूजा पंडालों की थीम पर नजर डालें, तो यह अगले साल के विधानसभा चुनाव के संदर्भ में कुछ संकेत देती है।


पंडालों की थीम और बांग्ला अस्मिता

दुर्गापूजा के दौरान हजारों पंडाल बनाए गए हैं, लेकिन महत्वपूर्ण स्थानों पर बने पंडालों की थीम बांग्ला अस्मिता से जुड़ी हुई है। इनमें बांग्ला भाषा और संस्कृति पर गर्व का प्रदर्शन किया गया है, साथ ही प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न को भी दर्शाया गया है। इसके अलावा, बंगाल के विभाजन से पहले के इतिहास और विभाजन की त्रासदी को भी पंडालों में शामिल किया गया है।


पंडालों की थीम और भाजपा का नैरेटिव

पश्चिम बंगाल में दुर्गापूजा के पंडालों की थीम वहां के इतिहास और संस्कृति की झलक प्रस्तुत करती है। पिछले साल लोकसभा चुनाव से पहले एक पंडाल में महात्मा गांधी को महिषासुर के रूप में दर्शाया गया था, जिसके परिणाम सभी ने देखे। इस साल के पंडालों की थीम भारतीय जनता पार्टी के लिए चुनौतीपूर्ण साबित हो रही है। कई पंडाल प्रवासी मजदूरों के उत्पीड़न को उजागर कर रहे हैं, खासकर भाजपा शासित राज्यों से आई उत्पीड़न की खबरों के संदर्भ में।


भाजपा की चुनौतियाँ और ममता बनर्जी का प्रभाव

इस बार भाजपा का नैरेटिव कमजोर पड़ता नजर आ रहा है। आरजी कर अस्पताल में जूनियर डॉक्टर के साथ बलात्कार और हत्या जैसी घटनाओं पर पंडाल नहीं बने हैं। सांप्रदायिक विभाजन को बढ़ावा देने वाली घटनाओं की थीम पर भी चर्चा नहीं हो रही है। इसके बजाय, बांग्ला अस्मिता, भाषा और प्रवासी बंगालियों के उत्पीड़न पर जोर दिया जा रहा है। यह मुद्दा भाजपा नेतृत्व के लिए चुनौती बन गया है। नरेंद्र मोदी और अमित शाह के मुकाबले ममता बनर्जी ने बाहरी बनाम बंगाली का मुद्दा उठाया है। भाजपा के लिए यह संकट है कि इतने वर्षों बाद भी वह पश्चिम बंगाल में कोई प्रभावी नेता नहीं खड़ा कर पाई है।