पश्चिमी देशों द्वारा फिलिस्तीन को मान्यता: ट्रंप के लिए एक नया संकट

अमेरिका के राष्ट्रपति ट्रंप का नया संकट
अमेरिकी इतिहास में वर्तमान समय को एक शर्मनाक मोड़ के रूप में याद किया जाएगा, क्योंकि ट्रंप अब उस राष्ट्रपति के रूप में जाने जाएंगे, जिनके कार्यकाल में पश्चिमी देश अमेरिका से अलग होकर फिलिस्तीन को मान्यता देने लगे हैं। ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया ने एक संयुक्त घोषणा जारी की है, जिसमें उन्होंने स्पष्ट किया है कि वे फिलिस्तीन को 1967 की सीमाओं के आधार पर एक देश के रूप में मान्यता देते हैं। इसका मतलब है कि फिलिस्तीन की आधी से अधिक भूमि इजरायल द्वारा कब्जा की गई है। इन तीनों देशों ने यह भी कहा है कि यह कब्जा अवैध है और असली फिलिस्तीन 1967 के नक्शे के अनुसार है, जिसे अमेरिका और इजरायल ने कभी स्वीकार नहीं किया।
ट्रंप का प्रयास और पश्चिमी देशों का जवाब
ट्रंप ने इस स्थिति को रोकने के लिए हर संभव प्रयास किया, जिसमें 60 बिलियन डॉलर का निवेश शामिल था, ताकि ब्रिटेन को झुकाया जा सके और दबाव डाला जा सके कि पश्चिमी देश अमेरिका के खिलाफ न जाएं। लेकिन ब्रिटेन के प्रधानमंत्री कीर स्टार्मर ने ट्रंप की बात को ठुकराते हुए फिलिस्तीन को मान्यता देने का वादा पूरा किया। यह कदम इसलिए महत्वपूर्ण है क्योंकि पश्चिमी ब्लॉक की ताकत अमेरिका का सबसे बड़ा हथियार था। अब यह भ्रम टूट गया है कि अमेरिका जो कहेगा, पश्चिमी देश वही करेंगे।
ट्रंप के खिलाफ बढ़ता दबाव
हाल के समय में ट्रंप ने पश्चिमी देशों को लगातार परेशान किया है, नाटो फंडिंग को लेकर विवाद किए और व्यापार युद्ध में दबाव की रणनीति अपनाई। वहीं, यूरोप से चीन-भारत के खिलाफ कार्रवाई करवाने की कोशिश की। अब, ब्रिटेन, कनाडा और ऑस्ट्रेलिया के इस कदम ने ट्रंप को एक विलेन बना दिया है। अमेरिकी राजनीति में यहूदी लॉबी का दबदबा है, और कोई भी राष्ट्रपति खुलकर इजरायल के खिलाफ नहीं जाता। लेकिन अब हालात बदल गए हैं।
अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महत्वपूर्ण कदम
इस कदम को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर 'टू नेशन सॉल्यूशन' को जिंदा रखने के लिए एक महत्वपूर्ण प्रयास माना जा रहा है। हालांकि, इससे इजरायल और अमेरिका के साथ पश्चिमी देशों के रिश्तों में खटास आ सकती है। ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया और कनाडा ने संयुक्त राष्ट्र महासभा की बैठक से कुछ दिन पहले ही फिलिस्तीन को आधिकारिक मान्यता दी है। ब्रिटिश पीएम कीर स्टार्मर ने इस फैसले की घोषणा करते हुए कहा कि यह कदम फिलिस्तीन और इजरायल के लोगों के लिए शांति की उम्मीद और 'टू स्टेट सॉल्यूशन' को जिंदा रखने की दिशा में उठाया गया है।