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प्रादा ने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर की स्वीकृति दी

इतालवी लक्जरी ब्रांड प्रादा ने अपने स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर संग्रह में कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर की स्वीकृति दी है। यह कदम भारतीय फैशन समुदाय में विवाद का कारण बना है, क्योंकि प्रादा पर पारंपरिक डिज़ाइन का उपयोग करने का आरोप लगाया गया है। प्रादा ने इस संबंध में अपनी जिम्मेदारी और सांस्कृतिक जुड़ाव को बढ़ावा देने का आश्वासन दिया है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा गया है।
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प्रादा ने कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर की स्वीकृति दी

प्रादा का नया संग्रह और कोल्हापुरी चप्पलें

इतालवी लक्जरी फैशन ब्रांड प्रादा ने हाल ही में यह स्वीकार किया है कि उनकी स्प्रिंग/समर 2026 मेन्सवियर लाइन में कोल्हापुरी चप्पलों से प्रेरित फुटवियर शामिल हैं। यह बयान तब आया है जब भारत में ब्रांड पर पारंपरिक डिज़ाइन के उपयोग को लेकर आलोचना बढ़ रही है।


फैशन शो में प्रदर्शित चप्पलें

प्रादा ने कोल्हापुरी चप्पलों से मिलती-जुलती चप्पलें बनाने के लिए आलोचना का सामना किया है। प्रादा समूह के कॉरपोरेट सामाजिक उत्तरदायित्व प्रमुख लोरेंजो बर्टेली ने 'महाराष्ट्र चैंबर ऑफ कॉमर्स, इंडस्ट्री एंड एग्रीकल्चर' के अध्यक्ष ललित गांधी को एक पत्र में लिखा, "हम स्वीकार करते हैं कि हाल ही में आयोजित प्रादा मेन्स 2026 फैशन शो में प्रदर्शित सैंडल पारंपरिक भारतीय हस्तनिर्मित चप्पलों से प्रेरित हैं। हम इस भारतीय शिल्प कौशल के सांस्कृतिक महत्व को गहराई से पहचानते हैं।"


डिजाइन की नकल का आरोप

इससे पहले, गांधी ने प्रादा की चप्पलों को लेकर उत्पन्न आक्रोश के बाद बर्टेली को पत्र लिखा था। प्रादा ने अपने शो के नोट्स में चप्पलों को 'चमड़े के सैंडल' के रूप में वर्णित किया, जिसमें भारतीय संबंध का कोई उल्लेख नहीं था। इससे भारत के फैशन समुदाय और कोल्हापुरी चप्पल के पारंपरिक निर्माताओं में नाराजगी पैदा हुई। गांधी ने पत्र में लिखा, "मैं हाल में पेश पुरुषों के स्प्रिंग/समर 2026 संग्रह से संबंधित मामले की ओर आपका ध्यान आकर्षित करना चाहता हूं, जिसे 23 जून 2025 को मिलान में प्रदर्शित किया गया था।"


कोल्हापुरी चप्पल का व्यवसायीकरण

गांधी ने कहा, "लोगों ने देखा है कि संग्रह में ऐसे फुटवियर डिजाइन शामिल हैं जो कोल्हापुरी चप्पलों से काफी मिलते-जुलते हैं। कोल्हापुरी चप्पल एक पारंपरिक हस्तनिर्मित चमड़े का सैंडल है, जिसे 2019 में भारत सरकार ने भौगोलिक संकेत (जीआई) का दर्जा दिया था।" उन्होंने यह भी कहा कि ये चप्पलें न केवल सांस्कृतिक पहचान का प्रतीक हैं, बल्कि हजारों कारीगरों और परिवारों की आजीविका का सहारा भी हैं।


प्रादा की प्रतिक्रिया

बर्टेली ने अपने जवाब में कहा, "कृपया ध्यान दें कि पूरा संग्रह अभी डिजाइन और विकास के प्रारंभिक चरण में है और किसी भी चीज के उत्पादन या व्यावसायीकरण की पुष्टि नहीं हुई है।" उन्होंने यह भी कहा कि प्रादा जिम्मेदारीपूर्वक उत्पादन और स्थानीय भारतीय कारीगरों के साथ बातचीत के लिए प्रतिबद्ध है।