प्रियंका गांधी का प्रभाव: शीतकालीन सत्र में राजनीति का नया चेहरा
प्रियंका गांधी का प्रभाव
संसद का शीतकालीन सत्र प्रियंका गांधी वाड्रा के लिए एक महत्वपूर्ण अवसर साबित हुआ। इस सत्र में कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित हुए और विभिन्न मुद्दों पर चर्चा हुई, लेकिन प्रियंका की उपस्थिति ने सभी का ध्यान आकर्षित किया। वे केवल डेढ़ साल पहले संसद में शामिल हुई हैं, और इस सत्र में उन्होंने वंदे मातरम् पर चर्चा के दौरान कहा कि नरेंद्र मोदी 12 साल से प्रधानमंत्री हैं, जबकि वे खुद 12 महीने पहले संसद में आई हैं। इस सत्र में उनके भाई राहुल गांधी की अनुपस्थिति ने प्रियंका को नेतृत्व करने का मौका दिया। उन्होंने हर बहस को दिशा दी और विपक्षी दलों ने पहली बार इतनी गंभीरता से उन्हें नोटिस किया। प्रियंका गांधी की राजनीतिक शैली पर चर्चा भी शुरू हो गई है।
शीतकालीन सत्र के समापन के बाद, प्रियंका ने स्पीकर के चैम्बर में विपक्ष के नेताओं के साथ औपचारिक चाय पार्टी में भाग लिया। इस दौरान उन्हें काफी ध्यान मिला, जबकि राहुल ऐसी बैठकों में नहीं जाते। प्रियंका ने राजनाथ सिंह के साथ बातचीत की और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से विदेश यात्रा के अनुभव के बारे में पूछा। उन्होंने हल्की-फुल्की बातें कीं, जिससे माहौल खुशनुमा बना। हालांकि, उन्होंने सरकार पर भी कड़ा हमला किया, यह कहते हुए कि सरकार जल्दबाजी में विधेयक लाती है और रोजगार गारंटी बिल से महात्मा गांधी का नाम हटाने के लिए आलोचना की।
प्रियंका ने सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से भी मुलाकात की, जो उनके चुनाव क्षेत्र के काम के लिए थी, लेकिन यह भी एक बड़ी खबर बनी। उन्होंने गडकरी के काम की सराहना की। इस सत्र में प्रधानमंत्री मोदी ने वंदे मातरम् पर डेढ़ घंटे का भाषण दिया, जबकि अमित शाह ने चुनाव सुधारों पर बात की। लेकिन प्रियंका का भाषण सबसे अधिक चर्चा का विषय बना। उन्होंने सहजता से सदन को संबोधित किया और बिना कटुता के प्रधानमंत्री की आलोचना की। उनकी प्रतिक्रिया संसद के बाहर भी संतुलित रही, जिससे यह सत्र प्रियंका का सत्र माना जा रहा है। भाजपा के नेता राहुल पर तंज कसते हुए कह रहे हैं कि प्रियंका सहजता से अपनी जगह बना रही हैं।
