बांग्लादेश और तुर्की का सैन्य सहयोग: भारत के लिए नई चुनौतियाँ

बांग्लादेश और तुर्की के बीच बढ़ता सैन्य सहयोग
विश्व समाचार: बांग्लादेश और तुर्की के बीच बढ़ते सैन्य संबंध भारत के लिए चिंता का विषय बन गए हैं। बांग्लादेश, जो पहले से ही चीन से हथियार खरीद रहा है, अब तुर्की के सहयोग से चटगांव और नारायणगंज में रक्षा औद्योगिक परिसर स्थापित करने की योजना बना रहा है। यह कदम न केवल बांग्लादेश की सैन्य शक्ति को बढ़ाएगा, बल्कि क्षेत्रीय सुरक्षा को लेकर नए सवाल भी खड़े करेगा।
बांग्लादेश की औद्योगिक विकास प्राधिकरण (BIDA) के कार्यकारी अध्यक्ष चौधरी आशिक महमूद बिन हारून ने हाल ही में तुर्की का दौरा किया। इस यात्रा के दौरान उन्होंने तुर्की की सरकारी कंपनी मकीने वे किम्या एंडुस्त्री (MKE) के साथ गहन चर्चा की। इस मुलाकात का उद्देश्य हथियारों के सह-उत्पादन, तकनीकी हस्तांतरण और क्षमता निर्माण को बढ़ावा देना था। हारून को MKE की मैन्युफैक्चरिंग इकाइयों, परीक्षण स्थलों और गोपनीय जानकारी तक पहुंच प्रदान की गई, जो एक असामान्य कदम माना जा रहा है।
पहले भी हो चुका है सहयोग
यह पहली बार नहीं है जब बांग्लादेश ने तुर्की के साथ रक्षा क्षेत्र में कदम बढ़ाए हैं। पिछले वर्ष, बांग्लादेश ने MKE से 105mm बोरण हॉवित्जर तोपें खरीदी थीं, जिनकी संख्या भविष्य में 200 तक बढ़ाने की योजना है। इसके अलावा, TRG-230/300 रॉकेट सिस्टम और तुर्की निर्मित ओटोकार तुलपर लाइट टैंक खरीदने की चर्चा भी चल रही है। 2018 में, बांग्लादेश ने तुर्की से बायक्तर TB2 ड्रोन सहित 15 प्रकार के सैन्य उपकरण खरीदे थे।
चटगांव और नारायणगंज में रक्षा परिसर
BIDA चटगांव और नारायणगंज में विशेष रक्षा औद्योगिक क्लस्टर स्थापित करने पर विचार कर रहा है। इन स्थानों की विशेषता यह है कि ये बंदरगाहों के निकट हैं या बंगाल की खाड़ी से जुड़े नदी मार्गों के करीब हैं। तुर्की की MKE कंपनी इन स्थानों का तकनीकी मूल्यांकन करने के लिए अपनी टीमें बांग्लादेश भेजने वाली है। बांग्लादेश का आर्थिक क्षेत्र अधिनियम 2010 निवेशकों को कर छूट, शुल्क में रियायत और परिचालन स्वतंत्रता जैसे प्रोत्साहन देता है, जो इस सहयोग को और आकर्षक बनाता है।
भारत के लिए खतरे की घंटी
बांग्लादेश और तुर्की का यह गठजोड़ भारत के लिए कई कारणों से चिंताजनक है। पहला, तुर्की का पाकिस्तान के साथ गहरा रक्षा सहयोग है, और वह अक्सर भारत के खिलाफ रुख अपनाता रहा है। दूसरा, बांग्लादेश का चीन से हथियार खरीदना और अब तुर्की के साथ सैन्य सहयोग क्षेत्रीय शक्ति संतुलन को प्रभावित कर सकता है। चटगांव जैसे रणनीतिक स्थान पर हथियार निर्माण भारत के समुद्री हितों के लिए भी खतरा बन सकता है।
क्या है भविष्य की योजना?
खबरों के अनुसार, बांग्लादेश और तुर्की जल्द ही एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर सकते हैं। इसके साथ ही एक रक्षा औद्योगिक कार्य समूह का गठन भी किया जाएगा, जो नीति निर्माण और योजनाओं के क्रियान्वयन की निगरानी करेगा। यह सहयोग बांग्लादेश की सैन्य क्षमता को बढ़ाने के साथ-साथ तुर्की के रक्षा उद्योग को भी नई ताकत देगा।