बांग्लादेश की राजनीति में खून और खौफ का साया: शेख हसीना की चेतावनी
बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति
बांग्लादेश की राजनीतिक स्थिति एक बार फिर से हिंसा और भय के वातावरण में है। छात्र नेता शरीफ उस्मान हादी की हत्या ने देश की अस्थायी सरकार की कार्यप्रणाली पर गंभीर प्रश्न उठाए हैं। पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने इस हत्या को कानून व्यवस्था के पूर्ण पतन का प्रतीक बताते हुए अंतरिम सरकार और उसके प्रमुख मुहम्मद युनूस पर तीखा हमला किया है। उन्होंने कहा कि यह हत्या अकेली घटना नहीं है, बल्कि उस अराजकता का परिणाम है जो उनकी सरकार के हटने के बाद तेजी से बढ़ी है। उनके अनुसार, हिंसा अब सामान्य हो चुकी है और अंतरिम प्रशासन या तो इसे नकार रहा है या इसे रोकने में असफल है। उन्होंने चेतावनी दी कि यह स्थिति न केवल बांग्लादेश को आंतरिक रूप से अस्थिर कर रही है, बल्कि पड़ोसी देशों के साथ संबंधों पर भी नकारात्मक प्रभाव डाल रही है, विशेषकर भारत के साथ।
अल्पसंख्यकों पर हमले
पूर्व प्रधानमंत्री ने अल्पसंख्यकों पर हो रहे हमलों का मुद्दा भी उठाया। मयमनसिंह जिले में 27 वर्षीय हिंदू युवक दीपु चंद्र दास की भीड़ द्वारा हत्या और उसके शव को जलाने की घटना को उन्होंने अंतरिम सरकार की विफलता बताया। हसीना के अनुसार, ऐसे कृत्य यह दर्शाते हैं कि राज्य अपने नागरिकों की सुरक्षा में असमर्थ हो चुका है। उन्होंने आरोप लगाया कि वर्तमान सत्ता संरचना में उग्रवादी तत्वों का प्रभाव बढ़ गया है। उनके अनुसार, भारत विरोधी भावनाएं जानबूझकर भड़काई जा रही हैं, राजनयिक ठिकानों और मीडिया संस्थानों पर हमले हो रहे हैं, और दोषियों को सजा के बजाय संरक्षण मिल रहा है।
विदेश नीति पर सवाल
विदेश नीति पर भी शेख हसीना ने सवाल उठाए। उन्होंने कहा कि पाकिस्तान के साथ जल्दबाजी में नजदीकी बढ़ाना और पुराने सहयोगियों को नाराज करना उस सरकार के लिए अनुचित है, जिसे जनता का जनादेश नहीं मिला है। उन्होंने स्पष्ट रूप से कहा कि अंतरिम प्रशासन को दीर्घकालिक रणनीतिक दिशा तय करने का कोई अधिकार नहीं है।
अंतरिम सरकार की विफलताएँ
अंतरिम सरकार की सबसे बड़ी विफलता यह है कि उसने सत्ता संभालते ही राज्य की बुनियादी जिम्मेदारियों को छोड़ दिया है। कानून व्यवस्था का अर्थ केवल पुलिस तैनात करना नहीं होता, बल्कि यह स्पष्ट संदेश देना होता है कि हिंसा किसी भी रूप में स्वीकार्य नहीं है। आज बांग्लादेश में यह संदेश गायब है। नतीजतन, बंदूकधारी, भीड़ और कट्टरपंथी खुद को सत्ता का असली मालिक समझने लगे हैं।
समाज का नैतिक आईना
अल्पसंख्यकों पर हमले किसी भी समाज का नैतिक आईना होते हैं। जब हिंदू युवक को भीड़ जला देती है और सरकार खामोश रहती है, तो यह केवल एक समुदाय पर हमला नहीं होता, बल्कि यह संविधान और सभ्यता पर हमला बन जाता है। ऐसी घटनाएं यह बताती हैं कि कट्टरता अब हाशिये पर नहीं, बल्कि केंद्र में पहुंच रही है।
भारत के साथ संबंधों की चिंता
भारत के साथ संबंधों में बढ़ती कटुता भी चिंता का विषय है। भारत और बांग्लादेश के रिश्ते केवल कूटनीतिक समझौतों पर आधारित नहीं हैं, बल्कि यह साझा इतिहास, सुरक्षा और विकास की आवश्यकताओं से जुड़े हैं। इन्हें कमजोर करना किसी तात्कालिक राजनीतिक संतोष का साधन हो सकता है, लेकिन दीर्घकाल में इसका खामियाजा बांग्लादेश को ही भुगतना पड़ेगा। सबसे खतरनाक संकेत यह है कि अंतरिम सत्ता के इर्द-गिर्द उग्रवादी शक्तियां वैधता का चोला पहनने की कोशिश कर रही हैं। जब अनुभवहीन नेतृत्व कट्टर ताकतों के सहारे शासन चलाता है, तो लोकतंत्र केवल नाम का रह जाता है।
बांग्लादेश का भविष्य
बांग्लादेश आज एक चौराहे पर खड़ा है। शरीफ उस्मान हादी की मौत एक चेतावनी है कि यदि समय रहते दिशा नहीं बदली गई, तो यह चौराहा जल्द ही खंडहर में बदल सकता है।
