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बिहार SIR मुद्दे पर संसद में चर्चा की संभावना पर उठे सवाल

बिहार में SIR मुद्दे पर विपक्ष ने सरकार के खिलाफ एकजुटता दिखाई है और सदन में चर्चा की मांग की है। हालांकि, सरकारी सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे पर चर्चा नहीं होगी। इसके पीछे तीन मुख्य कारण बताए गए हैं, जिनमें चुनाव आयोग का पक्ष न होना और प्रशासनिक प्रक्रियाओं पर चर्चा की सीमाएं शामिल हैं। जानें इस मुद्दे की पूरी जानकारी और इसके राजनीतिक प्रभावों के बारे में।
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बिहार SIR मुद्दे पर संसद में चर्चा की संभावना पर उठे सवाल

बिहार में SIR पर विपक्ष का विरोध

Bihar SIR issue Parliament: बिहार में SIR के मुद्दे पर विपक्ष ने पटना से लेकर दिल्ली तक सरकार के खिलाफ एकजुटता दिखाई है। विपक्ष की मांग है कि इस विषय पर सदन में चर्चा की जाए। हालांकि, सरकारी सूत्रों के अनुसार, सरकार इस मुद्दे पर चर्चा नहीं करने का निर्णय ले चुकी है। इसके पीछे तीन मुख्य कारण बताए गए हैं।


सूत्रों के अनुसार, कल लोकसभा में SIR के मुद्दे पर जोरदार प्रदर्शन हुआ, जिसके कारण ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा में देरी हुई। विपक्ष ने सरकार से यह आश्वासन मांगा था कि ऑपरेशन सिंदूर की चर्चा समाप्त होने के बाद बिहार में SIR पर भी चर्चा की जाएगी। लेकिन संसदीय मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यदि नियम अनुमति देते हैं और बीएसी में इस पर निर्णय होता है, तो सरकार किसी भी विषय पर चर्चा के लिए तैयार है। लेकिन सरकारी सूत्रों का कहना है कि SIR पर सदन में चर्चा नहीं हो सकती। इसके पीछे तीन कारण हैं।


पहला- केंद्रीय चुनाव आयोग द्वारा उठाया गया कदम कोई नई बात नहीं है। यह पहले भी कई बार हो चुका है और इसे एक प्रशासनिक कदम माना जा रहा है, न कि चुनाव सुधार के लिए आवश्यक कदम।


दूसरा- यदि SIR के मुद्दे पर चर्चा होती है, तो चुनाव आयोग का पक्ष रखने के लिए सदन में कोई उपस्थित नहीं होगा। चुनाव आयोग सदन में अपना पक्ष रखने नहीं आ सकता। हालांकि कानून मंत्रालय आयोग का नोडल मंत्रालय है, लेकिन यह केवल प्रशासनिक कार्यों का ध्यान रखता है।


तीसरा- कई संस्थाएं हैं जो संसद में अपना पक्ष नहीं रख सकतीं, इसलिए उन पर चर्चा संभव नहीं है। सरकार पूर्व लोकसभा स्पीकर बलराम जाखड़ के 1986 में दिए गए बयान का हवाला दे रही है, जिसमें उन्होंने कहा था कि प्रशासनिक प्रक्रियाओं और निर्णयों पर चर्चा संभव नहीं है।