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बिहार और झारखंड में साजिश थ्योरी की चर्चा: क्या हैं असली कारण?

बिहार और झारखंड में नई सरकारों के गठन के साथ साजिश थ्योरी की चर्चाएं तेज हो गई हैं। बिहार में नीतीश कुमार के नेतृत्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं, जबकि झारखंड में हेमंत सोरेन के भाजपा के साथ संभावित गठबंधन की बातें हो रही हैं। जानें इन चर्चाओं के पीछे के कारण और राजनीतिक परिदृश्य में क्या बदलाव आ सकते हैं।
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बिहार और झारखंड में साजिश थ्योरी की चर्चा: क्या हैं असली कारण?

बिहार और झारखंड में साजिश थ्योरी का उदय

यह एक दिलचस्प स्थिति है कि बिहार में एक अभूतपूर्व जनादेश के साथ नई सरकार का गठन हुआ है, लेकिन इसके साथ ही साजिश थ्योरी की बातें भी शुरू हो गई हैं। झारखंड में भी हेमंत सोरेन की सरकार ने पहले से अधिक बहुमत हासिल किया है, फिर भी वहां भी साजिश थ्योरी की चर्चा हो रही है। ऐसा प्रतीत होता है कि भाजपा इस प्रकार की चर्चाओं को बढ़ावा दे रही है, क्योंकि हर साजिश में भाजपा को लाभ मिलने की बातें सामने आ रही हैं, जबकि क्षेत्रीय पार्टियों के अस्तित्व पर सवाल उठाए जा रहे हैं। यह सोचने का विषय है कि क्या क्षेत्रीय पार्टियां अपने हितों को नहीं समझ रही हैं।


झारखंड में संभावित राजनीतिक बदलाव

झारखंड में चर्चा है कि हेमंत सोरेन, कांग्रेस, राजद और लेफ्ट को छोड़कर भाजपा के साथ सरकार बनाने की योजना बना रहे हैं। यह नई बात नहीं है, क्योंकि पिछले पांच वर्षों में भी ऐसी बातें उठती रही हैं। लेकिन इस बार समयसीमा भी दी जा रही है। कहा जा रहा है कि हेमंत सोरेन की अमित शाह से मुलाकात हो चुकी है और झारखंड में नया गठबंधन जल्द ही बनने वाला है। भाजपा को उप मुख्यमंत्री का पद और चार मंत्री पद मिलने की संभावना जताई जा रही है।


साजिश थ्योरी के पीछे के तर्क

इस साजिश थ्योरी के पीछे दो मुख्य बातें हैं। पहली यह कि कोयला और खनन से जुड़े घोटालों में हेमंत सोरेन को जेल जाने का खतरा है, जिससे बचने के लिए भाजपा के साथ जाना एक विकल्प हो सकता है। दूसरी थ्योरी वैचारिक है, जिसमें कहा जा रहा है कि भाजपा झारखंड की जनसंख्या संरचना को लेकर चिंतित है। आदिवासी समुदाय के घटने से भाजपा की राजनीति पर असर पड़ सकता है।


बिहार में राजनीतिक हलचल

बिहार में भी चर्चा शुरू हो गई है कि भाजपा नीतीश कुमार को हटाकर अपना मुख्यमंत्री बनाने की योजना बना रही है। दूसरी ओर, नीतीश कुमार ने छोटी पार्टियों को तोड़कर जनता दल यू को सबसे बड़ी पार्टी बनाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं। पहले कहा जा रहा था कि नेतृत्व परिवर्तन उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव से पहले नहीं होगा, लेकिन अब पश्चिम बंगाल चुनाव तक की समयसीमा दी जा रही है।