बिहार की राजनीति में परिवारवाद और दामादवाद का संघर्ष

परिवारवाद बनाम दामादवाद की जंग
बिहार की राजनीतिक परिदृश्य में इन दिनों एक दिलचस्प संघर्ष देखने को मिल रहा है, जिसमें परिवारवाद और 'दामादवाद' के बीच टकराव हो रहा है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी विपक्षी दलों, विशेषकर आरजेडी, पर परिवारवाद का आरोप लगाते रहते हैं। इसके जवाब में, आरजेडी ने एनडीए पर उसी अंदाज में पलटवार किया है। हाल ही में, पटना में आरजेडी द्वारा कई स्थानों पर पोस्टर और होर्डिंग्स लगाए गए हैं, जिनमें एनडीए के नेताओं और उनके दामादों को निशाना बनाया गया है। एक पोस्टर में मजेदार तरीके से लिखा गया है कि एनडीए का मतलब 'नेशनल दामाद आयोग' है।
मुख्य चेहरों पर निशाना
इन पोस्टरों में तीन प्रमुख चेहरों को लक्षित किया गया है:
- केंद्रीय मंत्री जीतन राम मांझी और उनके दामाद देवेंद्र मांझी।
- राज्य मंत्री अशोक चौधरी और उनके दामाद सायन कुणाल।
- दिवंगत नेता रामविलास पासवान और उनके दामाद मृणाल।
आरजेडी का यह प्रयास यह दर्शाने का है कि यदि उनके परिवार में रिश्तेदार राजनीति में हैं, तो एनडीए में भी यही स्थिति है, फर्क सिर्फ इतना है कि वहां 'दामाद' प्रमुखता में हैं। इस राजनीतिक कटाक्ष की शुरुआत आरजेडी द्वारा एक वीडियो जारी करने से हुई, जिसमें एनडीए नेताओं के दामादों की राजनीतिक भूमिकाओं को उजागर किया गया।
परिवारवाद का मुद्दा
पटना के प्रमुख चौक-चौराहों और व्यस्त सड़कों पर ये पोस्टर लोगों का ध्यान आकर्षित कर रहे हैं। राजनीति में परिवारवाद हमेशा से एक महत्वपूर्ण मुद्दा रहा है, जिसे भाजपा बार-बार उठाती रही है। जब सत्ता पक्ष के नेताओं के करीबी रिश्तेदार राजनीतिक या प्रशासनिक पदों पर होते हैं, तो विपक्ष को हमले का मौका मिल जाता है। आरजेडी का यह नया कदम दिखाता है कि विपक्ष भी संवाद और प्रचार के स्तर पर नए प्रयोग कर रहा है। 'दामादवाद' शब्द के माध्यम से पार्टी ने यह दिखाने का प्रयास किया है कि सत्ता पक्ष पर वही आरोप लगाए जा सकते हैं जो उन पर लगाए जाते हैं।