बिहार के विधायकों की संपत्ति में असमानता: अमीर और गरीब का चौंकाने वाला अंतर

बिहार के विधायकों के बीच संपत्ति का बड़ा अंतर
बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स (ADR) और बिहार इलेक्शन वॉच द्वारा जारी एक नई रिपोर्ट ने राज्य में आर्थिक असमानता को उजागर किया है। इस रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के विधायकों के बीच संपत्ति का अंतर अत्यधिक चौंकाने वाला है। सबसे अमीर विधायक के पास 80 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति है, जबकि सबसे गरीब विधायक की कुल संपत्ति एक लाख रुपये से भी कम है.
नीलम देवी: बिहार की सबसे अमीर विधायक
जदयू की मोकामा से विधायक नीलम देवी को बिहार की सबसे अमीर विधायक माना गया है। 2022 के उपचुनाव में जीतने के बाद, उन्होंने अपने हलफनामे में 80 करोड़ रुपये से अधिक की संपत्ति की घोषणा की है, जिसमें 29.8 करोड़ रुपये की चल संपत्ति और 50.6 करोड़ रुपये की अचल संपत्ति शामिल है। नीलम देवी केवल बिहार की नहीं, बल्कि देश की कुछ सबसे अमीर जनप्रतिनिधियों में से एक हैं।
अन्य शीर्ष विधायकों की संपत्ति
रिपोर्ट के अनुसार, बेलागंज से जदयू विधायक मनोरमा देवी 72.8 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ दूसरे स्थान पर हैं। उनकी संपत्ति का अधिकांश हिस्सा भूमि और प्रॉपर्टी से संबंधित है। वहीं, कांग्रेस विधायक अजीत शर्मा ने 43.2 करोड़ रुपये की संपत्ति घोषित की है, जिससे वे बिहार के तीसरे सबसे अमीर विधायक बनते हैं.
सबसे गरीब विधायक: रामवृक्ष सदा
आरजेडी के रामवृक्ष सदा खगड़िया जिले की अलौली सीट से विधायक हैं और उन्हें सबसे गरीब विधायक माना जाता है। उन्होंने अपने हलफनामे में केवल 70 हजार रुपये की संपत्ति की घोषणा की है। उनकी संपत्ति में 30 हजार रुपये की चल संपत्ति और 40 हजार रुपये की अचल संपत्ति शामिल है।
संपत्ति के बीच का बड़ा अंतर
ADR की रिपोर्ट में बताया गया है कि बिहार के सबसे अमीर और सबसे गरीब विधायकों के बीच संपत्ति का अंतर 80 करोड़ रुपये से अधिक है, जो 1,14,000 गुना का फासला दर्शाता है। यह स्थिति न केवल राजनीति में धन के प्रभाव को दर्शाती है, बल्कि यह भी दिखाती है कि आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों के लिए चुनावी राजनीति में प्रवेश करना कितना कठिन हो गया है।
राजनीति में आर्थिक असमानता पर बहस
बिहार देश के उन राज्यों में से एक है जहां प्रति व्यक्ति आय सबसे कम है। इस संदर्भ में, यह रिपोर्ट गंभीर सवाल उठाती है। जैसे-जैसे चुनाव नजदीक आ रहे हैं, यह मुद्दा विपक्ष और सत्ताधारी दलों के बीच बहस का केंद्र बन सकता है। राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि जब जनता गरीबी और बेरोजगारी से जूझ रही है, तब नेताओं की अरबों रुपये की संपत्ति असंतोष पैदा कर सकती है।