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बिहार चुनाव 2025: जातीय जनगणना पर उठे सवाल

बिहार चुनाव 2025 के नजदीक आते ही एनडीए में सब कुछ सामान्य नहीं दिख रहा है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के जीजा और सांसद अरुण भारती ने नीतीश सरकार की जातीय जनगणना पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा कि यह सर्वेक्षण केवल वोट बैंक की संख्या को उजागर करने के लिए था, न कि बहुजन समाज को उनका हक दिलाने के लिए। इस लेख में जानें कि कैसे यह मुद्दा चुनावी राजनीति को प्रभावित कर सकता है और क्या महागठबंधन की नीतियों में खामियां हैं।
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बिहार चुनाव 2025: जातीय जनगणना पर उठे सवाल

बिहार में एनडीए की स्थिति पर सवाल

Bihar Election 2025: बिहार में चुनावों से पहले एनडीए के भीतर सब कुछ सामान्य प्रतीत नहीं हो रहा है। केंद्रीय मंत्री चिराग पासवान के जीजा और सांसद अरुण भारती ने एक पोस्ट के माध्यम से नीतीश सरकार की जातीय जनगणना पर सवाल उठाए हैं। हालांकि उनका मुख्य निशाना तेजस्वी यादव थे, लेकिन इस मुद्दे में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी शामिल हो गए हैं।


अरुण भारती का बयान

अरुण भारती ने एक्स पर लिखा कि 'बिहार में महागठबंधन की सरकार के दौरान, अधूरे जातीय सर्वेक्षण का उद्देश्य केवल अपने वोट बैंक की संख्या को उजागर करना था, न कि बहुजन समाज को उनका हक और न्याय दिलाना। तेजस्वी यादव ने बहुजनों को केवल गिनती तक सीमित रखा। इसके विपरीत, चिराग पासवान ने केंद्रीय मंत्री रहते हुए वास्तविक जातीय जनगणना को पारित करवाया, जो बहुजनों की संख्या के साथ-साथ उनकी शिक्षा, रोजगार, संपत्ति और अवसरों की पूरी सामाजिक-आर्थिक तस्वीर को दर्ज करेगी। यह आंकड़ा बहुजनों को संवैधानिक न्याय दिलाने का आधार बनेगा।'


सर्वेक्षण की खामियां

इस सर्वेक्षण ने केवल जातियों की संख्या को गिना, जैसे कि कौन-सी जाति कितनी है। लेकिन यह नहीं बताया गया कि कौन-सी जाति कितनी गरीब है, किसकी शिक्षा तक पहुंच है या नहीं। सरकारी सेवाओं में किसकी कितनी हिस्सेदारी है और जमीन व संसाधनों पर किसका कितना अधिकार है?


न्यायिक आयोग की आवश्यकता

यह पूरा आयोजन बहुजन समाज, विशेषकर दलित, महादलित और आदिवासी समुदाय के साथ सीधा छल था। यदि वास्तव में बहुजन समाज के हक में काम किया जाता, तो एक न्यायिक आयोग गठित किया जाता। महागठबंधन की सरकार ने ऐसा नहीं किया। एक सामाजिक-आर्थिक रिपोर्ट तैयार की जानी चाहिए थी, लेकिन ऐसा भी नहीं हुआ।