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बिहार चुनाव आयोग के दावों पर उठे सवाल, मतदाता प्रपत्र की स्थिति संदिग्ध

बिहार में चुनाव आयोग के दावों पर सवाल उठ रहे हैं, जिसमें कहा गया है कि 50% से अधिक मतदाताओं ने प्रपत्र भरे हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार, आधे से अधिक लोगों को प्रपत्र नहीं मिला। इसके अलावा, आयोग द्वारा निर्धारित दस्तावेजों में कई खामियां हैं, जिससे उसकी विश्वसनीयता पर प्रश्नचिन्ह लगते हैं। जानें इस मुद्दे की पूरी जानकारी और चुनाव आयोग की स्थिति के बारे में।
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बिहार चुनाव आयोग के दावों पर उठे सवाल, मतदाता प्रपत्र की स्थिति संदिग्ध

चुनाव आयोग का विवादास्पद दावा

बिहार में चुनाव आयोग ने एक विवादास्पद स्थिति उत्पन्न कर दी है, जिसमें रोज नए खुलासे सामने आ रहे हैं। आयोग का कहना है कि राज्य के 50 प्रतिशत से अधिक मतदाताओं ने मतगणना प्रपत्र भरकर जमा कर दिया है। दूसरी ओर, योगेंद्र यादव की संस्था द्वारा किए गए सर्वेक्षण में यह सामने आया है कि आधे से अधिक लोगों को प्रपत्र प्राप्त ही नहीं हुआ है, या यदि मिला है तो केवल एक प्रति। यह स्थिति सोचने पर मजबूर करती है कि कैसे चुनाव आयोग यह दावा कर सकता है कि सभी मतदाताओं को प्रपत्र पहुंचा दिया गया है, जबकि वास्तविकता यह है कि आधे से अधिक लोगों को प्रपत्र नहीं मिला।


इस बार एक और खुलासा हुआ है, जिसने चुनाव आयोग की स्थिति को हास्यास्पद बना दिया है। जानकारी मिली है कि आयोग ने जिन 11 दस्तावेजों के आधार पर मतदाता बनाने का निर्णय लिया है, उनमें से तीन में जन्म तिथि या निवास का पता नहीं है, और दो दस्तावेज बिहार में उपलब्ध नहीं हैं।


सोचिए, चुनाव आयोग और उसके हर कदम का समर्थन करने वाले सोशल मीडिया पर भाजपा के समर्थक यह प्रचार कर रहे हैं कि 11 में से कोई भी एक दस्तावेज लेकर जाइए और मतदाता बन जाइए। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के प्रमाणपत्र, वन अधिकार प्रमाणपत्र, और आवासीय पता यानी डोमिसाइल सर्टिफिकेट में या तो जन्म तिथि नहीं होती या निवास का पता नहीं होता। ये दोनों बातें मतदाता बनने के लिए आवश्यक हैं। फिर इन दस्तावेजों के आधार पर कोई मतदाता कैसे बन सकता है? इसके अलावा, दो दस्तावेज एनआरसी और फैमिली रजिस्टर हैं, जिनका बिहार में कोई अस्तित्व नहीं है।


इसका मतलब यह है कि बिहार में एनआरसी नहीं है और फैमिली रजिस्टर भी नहीं है। ऐसे में ये दस्तावेज बिहार के लोग कहां से लाएंगे? हो सकता है कि चुनाव आयोग और अन्य अधिकारियों को इसकी जानकारी न हो, लेकिन यह भी संभव है कि आधार, पैन कार्ड, राशन कार्ड, और मनरेगा कार्ड को मान्यता न देने के कारण दस्तावेजों की सूची बढ़ाने के लिए इन्हें भी शामिल किया गया हो। इस सब से चुनाव आयोग की विश्वसनीयता और उसकी मंशा पर सवाल उठते हैं।