बिहार चुनाव: महागठबंधन की एकता पर उठ रहे सवाल

बिहार विधानसभा चुनाव की तैयारी
Bihar Election: बिहार में विधानसभा चुनाव के लिए नामांकन की प्रक्रिया समाप्त हो चुकी है, जिसके बाद चुनावी रैलियों का दौर शुरू हो गया है। सत्तारूढ़ एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी समेत कई प्रमुख नेताओं के साथ अपने चुनाव प्रचार को तेज कर दिया है। दूसरी ओर, महागठबंधन का चुनाव प्रचार अब तक धीमा नजर आ रहा है।
आरजेडी ने उम्मीदवारों की सूची जारी की
दूसरे चरण की नामांकन प्रक्रिया से पहले, राष्ट्रीय जनता दल (आरजेडी) ने अपने 143 उम्मीदवारों की सूची जारी की है। हालांकि, सीट बंटवारे को लेकर चल रहा विवाद महागठबंधन के उत्साह को कम कर रहा है। 243 सीटों वाली विधानसभा में महागठबंधन के 252 प्रत्याशी मैदान में हैं, जिससे कई सीटों पर घटक दलों के बीच प्रतिस्पर्धा की स्थिति बन गई है।
महागठबंधन की एकता पर सवाल
महागठबंधन की एकता पर सवाल इसलिए उठ रहे हैं क्योंकि 1 सितंबर को पटना में समाप्त हुई वोटर अधिकार यात्रा के बाद से कोई संयुक्त प्रचार अभियान नहीं देखा गया है। राहुल गांधी ने बिहार में प्रचार से दूरी बना रखी है, जबकि कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे की सक्रियता भी कम हो गई है। प्रियंका गांधी वाड्रा, जो महिलाओं को साधने की जिम्मेदारी संभाल रही हैं, ने भी 24 सितंबर के बाद से बिहार में वापसी नहीं की है।
संयुक्त घोषणापत्र की प्रक्रिया ठप
महागठबंधन ने एनडीए के खिलाफ एक संयुक्त घोषणापत्र तैयार करने की योजना बनाई थी, लेकिन सीट बंटवारे की जटिलताओं के कारण यह प्रक्रिया भी ठप हो गई है। कांग्रेस में असंतोष की लहर है, क्योंकि आरजेडी से अपेक्षित सीटें न मिलने और वरिष्ठ नेताओं के परिजनों को टिकट न दिए जाने से कई नेता नाखुश हैं।
झारखंड के सीएम की दूरी
झारखंड में सत्तारूढ़ झारखंड मुक्ति मोर्चा (झामुमो) ने भी बिहार में कुछ सीटों पर चुनाव लड़ने की इच्छा जताई थी, लेकिन अपेक्षित सीटें न मिलने पर उसने दूरी बना ली है। मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन का बिहार चुनाव प्रचार में शामिल होना अब अनिश्चित लग रहा है।
महागठबंधन की स्थिति
कुल मिलाकर, महागठबंधन नामांकन और सीट बंटवारे की उलझनों के बीच प्रचार की शुरुआत से पहले ही कमजोर नजर आ रहा है। एनडीए पूरी ताकत के साथ चुनावी मैदान में उतर चुका है, जबकि विपक्षी गठबंधन अब तक एकजुट नहीं हो पाया है। वोटर अधिकार यात्रा के दौरान जो ऊर्जा थी, वह अब कम होती दिख रही है। ऐसे में यह कहना गलत नहीं होगा कि बिहार चुनाव में महागठबंधन एनडीए से पिछड़ चुका है और उसे मतदाताओं के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं का विश्वास भी जीतना होगा।