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बिहार चुनाव में एनडीए सहयोगियों के बीच अविश्वास की स्थिति

बिहार चुनाव के परिणामों के बाद एनडीए की सहयोगी पार्टियों के बीच अविश्वास की स्थिति उत्पन्न हो गई है। चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को दी गई कठिन सीटों और कम अंतर से हार-जीत वाले परिणामों ने विवाद को जन्म दिया है। भाजपा के समर्थक सोशल मीडिया पर साजिश का आरोप लगा रहे हैं, जबकि जदयू ने प्रशासन की मदद से जीत हासिल करने का दावा किया है। जानें इस राजनीतिक संकट के पीछे की पूरी कहानी।
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बिहार चुनाव में एनडीए सहयोगियों के बीच अविश्वास की स्थिति

चुनाव परिणामों के बाद का संकट

बिहार में चुनाव परिणामों के बाद एनडीए की सहयोगी पार्टियों के बीच अविश्वास की स्थिति बनी हुई है। चुनाव से पहले यह चर्चा थी कि चिराग पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी को भाजपा और जदयू ने कठिन सीटें दी हैं। उन्हें 29 में से 20 सीटें दी गईं, जिन पर पिछली बार राजद ने जीत हासिल की थी और वे काफी मजबूत थीं। उपेंद्र कुशवाहा को भी कठिन सीटें दिए जाने की बात सामने आई थी। चुनाव परिणामों के बाद अविश्वास की भावना और बढ़ गई है।


कम अंतर से हार-जीत वाली सीटों पर विवाद बढ़ गया है। भाजपा के समर्थक सोशल मीडिया पर यह प्रचार कर रहे हैं कि भाजपा के छह उम्मीदवार कम अंतर से हारे हैं और इसके पीछे कोई साजिश है। कहा जा रहा है कि वोटों की गिनती के दौरान जदयू ने प्रशासन की मदद से यह सुनिश्चित किया कि वे सबसे बड़ी पार्टी बनें।


रामगढ़ और नबीनगर की सीटों पर विवाद

रामगढ़ सीट पर बहुजन समाज पार्टी के पिंटू यादव ने सिर्फ 30 वोट से जीत हासिल की, जहां उन्होंने भाजपा के अशोक सिंह को हराया। चुनाव परिणामों के बाद जदयू के नेताओं ने पिंटू यादव से संपर्क किया और उन्हें पार्टी में शामिल होकर मंत्री बनने का प्रस्ताव दिया। भाजपा के नेता यह कहने में संकोच कर रहे हैं कि रामगढ़ में भाजपा को जानबूझकर हरवाया गया।


इसी तरह, जदयू के राधाचरण साह ने संदेश सीट पर केवल 27 वोट से जीत हासिल की, जबकि वहां साढ़े तीन सौ पोस्टल बैलेट रद्द कर दिए गए थे। जदयू के उम्मीदवार चेतन आनंद ने नबीनगर से 112 वोट से जीत दर्ज की। इन उदाहरणों के आधार पर यह कहा जा रहा है कि प्रशासन की मदद से जदयू ने नजदीकी मुकाबले वाली सीटों पर अपने उम्मीदवारों को जिताया, जबकि भाजपा को हराया।