बिहार चुनाव में घुसपैठिया मुद्दा: राजनीति का नया मोड़
बिहार में घुसपैठिया का मुद्दा
बिहार के मतदाताओं के लिए यह चौंकाने वाला है कि अमित शाह चुनावी प्रचार में घुसपैठियों का मुद्दा क्यों उठा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहले भी इस विषय पर बात की थी, लेकिन जब वे चुनावी रैलियों में पहुंचे, तो इस पर चुप्पी साध ली। विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) के बाद भी, जो मतदाता सूची का अंतिम रूप है, शाह ने फिर से घुसपैठियों का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि यदि भाजपा सत्ता में आई, तो सभी घुसपैठियों की पहचान कर उन्हें बाहर निकाला जाएगा। यह सवाल उठता है कि क्या एसआईआर के माध्यम से घुसपैठियों का पता नहीं लगाया गया? अगर इतनी बड़ी प्रक्रिया से जानकारी नहीं मिली, तो फिर कैसे मिलेगी? ऐसा प्रतीत होता है कि यह मुद्दा बिहार से ज्यादा अन्य राज्यों के लिए महत्वपूर्ण है।
सांप्रदायिक ध्रुवीकरण का खेल
बिहार में घुसपैठियों का मुद्दा सांप्रदायिक ध्रुवीकरण के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है, लेकिन असली खेल पश्चिम बंगाल और असम में होने की संभावना है। भाजपा का कहना है कि इन राज्यों में घुसपैठियों के कारण जनसंख्या संरचना में बदलाव आ रहा है। असम में तो ऐसा नहीं है, लेकिन पश्चिम बंगाल में मतदाता सूची का विशेष गहन पुनरीक्षण (एसआईआर) होने वाला है। यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या बंगाल में घुसपैठियों या विदेशी मतदाताओं के लिए कोई श्रेणी बनाई जाती है। भाजपा ने पहले ही ममता बनर्जी की पार्टी पर आरोप लगाया है कि वे बांग्लादेश से लगती सीमा पर फर्जी वोटर बना रहे हैं। इस प्रकार, घुसपैठियों का मुद्दा असली राजनीति का केंद्र पश्चिम बंगाल में बनता जा रहा है।
