बिहार चुनाव में जन सुराज पार्टी की चुनौती: एग्जिट पोल्स का संकेत
बिहार की राजनीति में बदलाव की उम्मीदें
पटना: बिहार की राजनीतिक स्थिति में बदलाव की संभावनाओं के बीच प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी की पहली परीक्षा अपेक्षाकृत कमजोर नजर आ रही है। एग्जिट पोल्स के अनुसार, एनडीए आसानी से बहुमत की ओर बढ़ रही है, जबकि राजद-कांग्रेस महागठबंधन पीछे रह गया है।
एनडीए के लिए बहुमत का अनुमान
मुख्य एग्जिट पोल्स के अनुसार, बिहार की 243 विधानसभा सीटों में एनडीए को 122 सीटों का आंकड़ा पार करते हुए दिखाया गया है। अधिकांश सर्वेक्षणों में एनडीए को 140 से अधिक सीटें मिलने की संभावना जताई गई है, जबकि राजद-नीत महागठबंधन 70 से 108 सीटों के बीच सिमट सकता है। जन सुराज पार्टी का प्रदर्शन अपेक्षा से काफी कमजोर बताया गया है, जो अधिकतम पांच सीटों तक सीमित रह सकती है।
अर्श या फर्श का नारा, लेकिन वास्तविकता अलग
चुनाव से पहले प्रशांत किशोर ने कहा था कि उनकी पार्टी या तो 'अर्श पर' होगी या 'फर्श पर', लेकिन अब एग्जिट पोल्स के अनुसार जन सुराज फर्श पर नजर आ रही है। किशोर की पार्टी ने बिहार में अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, लेकिन वोटों को सीटों में बदलने में असफल रही। इसका राजद-कांग्रेस गठबंधन के वोट बैंक पर भी कोई खास असर नहीं पड़ा।
कंसल्टेंट से जन नेता बनने की कोशिश
प्रशांत किशोर, जिन्होंने पहले नीतीश कुमार और नरेंद्र मोदी जैसे नेताओं के लिए चुनावी रणनीति बनाई थी, अब खुद एक जन नेता के रूप में उभरे हैं। तीन साल की पदयात्रा और जनता से संवाद के माध्यम से उन्होंने जन सुराज का निर्माण किया। नौकरी, शिक्षा और पलायन जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करते हुए किशोर ने जातीय समीकरणों से ऊपर उठने की कोशिश की। उनके भाषण वायरल हुए और रैलियों में भीड़ जुटी, लेकिन यह वोट में तब्दील नहीं हो सका।
भीड़ से वोट तक नहीं पहुंची जन सुराज की लहर
जन सुराज का नाम और झंडा भले ही बिहार के हर कोने में दिखाई दिया, लेकिन वोट प्रतिशत में इसका प्रभाव सीमित रहा। अधिकांश सर्वेक्षणों ने पार्टी को शून्य से पांच सीटों के बीच रखा है। दैनिक भास्कर और पी-मार्क जैसे पोल्स ने भी पार्टी को अधिकतम चार सीटें दी हैं। इसका मतलब यह है कि जागरूकता और जमीनी वोटों के बीच अभी भी बड़ा फासला है।
14 नवंबर को आएगा नतीजा
एग्जिट पोल्स स्पष्ट संकेत दे रहे हैं कि एनडीए की सत्ता में वापसी तय है, लेकिन राजनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि बिहार के मतदाता कई बार सर्वेक्षणों को गलत साबित कर चुके हैं। अब सभी की नजरें 14 नवंबर को होने वाली मतगणना पर टिकी हैं, जो तय करेगी कि प्रशांत किशोर का 'जन सुराज' वास्तव में फर्श पर रह गया या परिणाम कुछ नया अध्याय लिखेंगे।
