बिहार चुनाव में महागठबंधन का मुख्यमंत्री चेहरा: तेजस्वी यादव का दबाव और कांग्रेस की चुप्पी

महागठबंधन में सस्पेंस
महागठबंधन समाचार: जैसे-जैसे बिहार विधानसभा चुनाव नजदीक आ रहा है, महागठबंधन (भारत ब्लॉक) के मुख्यमंत्री पद के चेहरे को लेकर स्थिति स्पष्ट नहीं हो पा रही है। राजद नेता तेजस्वी यादव ने स्पष्ट किया है कि गठबंधन चुनाव में मुख्यमंत्री पद का चेहरा घोषित करके ही मैदान में उतरेगा, लेकिन कांग्रेस ने इस पर अभी तक कोई ठोस समर्थन नहीं दिया है। कांग्रेस का कहना है कि इस मुद्दे पर सभी सहयोगी दल मिलकर निर्णय लेंगे।
कांग्रेस का सावधानी भरा रुख
कांग्रेस का सतर्क रुख
अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी के बिहार प्रभारी कृष्णा अल्लावारू ने सोमवार को कहा कि यह मुद्दा केवल एक पार्टी का नहीं है, बल्कि पूरे गठबंधन का है। उन्होंने कहा कि उचित समय पर सभी सहयोगी दल मिलकर बैठेंगे और निर्णय लेंगे। इस बयान से यह स्पष्ट है कि कांग्रेस तेजस्वी को महागठबंधन का एकमात्र सीएम चेहरा मानने से बच रही है।
चुनाव में चेहरे की अहमियत
चेहरे के साथ ही लड़ेंगे चुनाव
तेजस्वी यादव ने शनिवार को भाजपा पर हमला करते हुए कहा कि क्या हम भाजपा हैं कि हमारे पास मुख्यमंत्री पद के लिए नेता नहीं है? उन्होंने कहा कि महागठबंधन बिना मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार को घोषित किए चुनाव नहीं लड़ेगा। उनका यह रुख कांग्रेस और अन्य सहयोगियों पर दबाव डालता है, क्योंकि वे इस मुद्दे पर अभी भी असमंजस में हैं।
सीट बंटवारे की चुनौतियाँ
सीट बंटवारे पर खींचतान
गठबंधन के लिए सबसे बड़ी चुनौती सीटों का बंटवारा है। अभी तक कोई अंतिम समझौता नहीं हो पाया है। खबरों के अनुसार, राजद 243 सीटों में से कम से कम 150 सीटों पर चुनाव लड़ने का इरादा रखता है। यदि ऐसा होता है, तो अन्य सहयोगियों के लिए केवल 93 सीटें बचेंगी।
2020 चुनाव का अनुभव
2020 चुनाव का अनुभव
2020 के बिहार चुनाव में राजद ने 144 सीटों पर चुनाव लड़ा और 75 सीटों पर जीत हासिल की। सीपीआई (माले) लिबरेशन ने 19 सीटों में से 12 पर जीत दर्ज की। वहीं, सीपीआई ने छह सीटों में से दो जीतीं और सीपीएम ने चार में से दो सीटें जीतीं। गठबंधन की सबसे कमजोर कड़ी कांग्रेस साबित हुई थी, जिसने 70 सीटों पर चुनाव लड़ा लेकिन केवल 19 सीटें जीत पाई। इस बार भी सीट बंटवारे पर उसकी स्थिति कमजोर दिखाई दे रही है।
गठबंधन की जटिलताएँ
गठबंधन की जटिलताएं
महागठबंधन में नए दलों के शामिल होने से समीकरण और जटिल हो गए हैं। JMM और RLJP के शामिल होने के बाद सीटों की मांग और बढ़ गई है। इससे सहयोगी दलों के बीच मतभेद उभरने की संभावना है।