बिहार चुनाव में मुस्लिम वोटों का बिखराव: क्या महागठबंधन को मिलेगी चुनौती?
बिहार में मुस्लिम मतदाताओं की स्थिति
बिहार में किसी भी राजनीतिक दल ने मुसलमानों को उनकी जनसंख्या के अनुपात में टिकट नहीं दिए हैं। लालू प्रसाद की पार्टी राजद, जो मुस्लिम और यादव समीकरण पर चुनाव लड़ रही है, ने 18% मुस्लिम आबादी को केवल 18 सीटें दी हैं, जबकि 14% यादवों को 52 सीटें आवंटित की गई हैं। कांग्रेस, जो राजद की सहयोगी है, ने भी 10 मुस्लिम उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है। दूसरी ओर, एनडीए में इस बार मुस्लिम मतदाताओं का मोहभंग दिखाई दे रहा है, जिसके चलते गठबंधन ने 243 सीटों में से केवल पांच पर मुस्लिम उम्मीदवार खड़े किए हैं। पिछले चुनाव में 11 मुस्लिम उम्मीदवार देने वाले नीतीश कुमार ने इस बार सिर्फ चार उम्मीदवारों को ही टिकट दिया है। प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी और असदुद्दीन ओवैसी की ऑल इंडिया एमआईएम ने भी जनसंख्या के अनुपात में मुस्लिम उम्मीदवारों को उतारा है। इस बार मुस्लिम वोट के तीन दावेदार हैं: राजद के नेतृत्व वाला महागठबंधन, ओवैसी की एमआईएम और किशोर की जन सुराज।
मुस्लिम मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न
यह स्पष्ट है कि मुस्लिम मतदाताओं का वोटिंग पैटर्न एक ही मानक पर आधारित है, जो पूरे देश में लागू होता है। बिहार में भी, 2000 के चुनाव से लेकर अब तक, मुसलमान उसी पार्टी को वोट देते हैं जो भाजपा को हराने की क्षमता रखती है। सीमांचल के चार जिलों में, जहां मुस्लिम आबादी लगभग 50% है, सभी पार्टियों के उम्मीदवार मुस्लिम होते हैं, लेकिन इस बार कहा जा रहा है कि यदि एनडीए जीतता है, तो भाजपा मुख्यमंत्री बनाने का प्रयास करेगी। ऐसे में मुस्लिम वोटों का बंटवारा क्यों होगा? इस बार मुस्लिम वोट महागठबंधन के साथ एकजुट रहने का नैरेटिव बना हुआ है, फिर भी वोट बिखरता हुआ दिखाई दे रहा है।
मुस्लिम वोटों के बिखराव के कारण
मुस्लिम वोटों के बिखराव के कई कारण हैं। पहला यह धारणा है कि महागठबंधन एनडीए को रोकने में असफल रहेगा। मुसलमानों को लगता है कि यदि एनडीए को रोकना मुश्किल है, तो क्यों न वे अपने विधायकों की संख्या बढ़ाएं और अपना नेतृत्व तैयार करें। दूसरा कारण यह है कि राजद ने अधिक जनसंख्या वाले मुसलमानों को यादवों की तुलना में एक तिहाई सीटें दी हैं। तीसरा कारण यह है कि तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का दावेदार घोषित किया गया है, जबकि मुस्लिम समुदाय में से किसी को उप मुख्यमंत्री नहीं बनाया गया। विवाद बढ़ने पर यह कहा गया कि मुस्लिम और दलित को डिप्टी सीएम बनाया जाएगा। इस स्थिति का फायदा उठाते हुए ओवैसी ने मुस्लिम मुख्यमंत्री की बात उठाई है। चिराग पासवान का कहना है कि उनके पिता ने 2005 में मुस्लिम सीएम बनाने के लिए अपनी पार्टी को दांव पर लगाया था। इस प्रकार, मुसलमानों को लगता है कि यदि वे टैक्टिकल वोटिंग करेंगे, तो अपनी संख्या बढ़ा सकते हैं।
