बिहार चुनावों में तेजस्वी यादव का नाम मतदाता सूची से हटने का दावा: बीजेपी ने किया खंडन

चुनाव आयोग की नई मतदाता सूची पर बवाल
बिहार विधानसभा चुनावों की तैयारियों के बीच चुनाव आयोग द्वारा जारी की गई नई मतदाता सूची ने राजनीतिक हलचल पैदा कर दी है। राष्ट्रीय जनता दल (राजद) के नेता तेजस्वी यादव ने शनिवार को पटना में आयोजित एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में यह चौंकाने वाला आरोप लगाया कि उनका नाम वोटर लिस्ट से हटा दिया गया है। उन्होंने यह भी पूछा कि यदि उनका नाम सूची में नहीं है, तो क्या वे आगामी चुनावों में उम्मीदवार बन सकेंगे?
बीजेपी का तीखा जवाब
तेजस्वी यादव के इस बयान पर भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के नेता डॉ. संबित पात्रा ने दिल्ली में मीडिया से बात करते हुए तीखी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने कहा, "तेजस्वी यादव का यह दावा पूरी तरह से गलत है। चुनाव आयोग और पटना के जिलाधिकारी ने स्पष्ट किया है कि उनका नाम अब भी दिघा विधानसभा क्षेत्र की मतदाता सूची में क्रमांक 416 पर दर्ज है।"
EPIC नंबर का विवाद
डॉ. पात्रा ने आरोप लगाया कि तेजस्वी यादव ने प्रेस वार्ता में जो EPIC नंबर (मतदाता पहचान पत्र संख्या) RAB2916120 बताया, वह उनके 2020 के नामांकन हलफनामे में दर्ज नंबर RAB0456228 से मेल नहीं खाता। उन्होंने सवाल उठाया, "अगर उनके पास दो EPIC नंबर हैं, तो क्या इसका मतलब है कि उनके पास दो वोटर आईडी हैं? यह केवल एक त्रुटि नहीं, बल्कि लोकतंत्र की साख पर प्रश्नचिह्न है।"
चुनाव आयोग और DM की सफाई
विवाद बढ़ने के बाद चुनाव आयोग और पटना के जिलाधिकारी डॉ. चंद्रशेखर त्यागराजन ने स्पष्ट किया कि तेजस्वी यादव का नाम सूची में पहले की तरह दर्ज है। उन्होंने बताया कि उनका नाम पोलिंग स्टेशन संख्या 2004, लाइब्रेरी बिल्डिंग, एनिमल साइंस यूनिवर्सिटी में है और उनकी जानकारी सक्रिय है।
संस्थाओं को बदनाम करने का आरोप
डॉ. संबित पात्रा ने तेजस्वी यादव और कांग्रेस पर लोकतांत्रिक संस्थाओं को बदनाम करने का आरोप लगाते हुए कहा, "विपक्षी दलों का यह सुनियोजित प्रयास है कि वे चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की साख को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर खराब करें। यह भारत के लोकतंत्र को बदनाम करने की रणनीति है।"
लोकतंत्र पर बड़ा सवाल
इस विवाद ने केवल तेजस्वी यादव की साख को ही नहीं, बल्कि विपक्ष की रणनीति और भारत की लोकतांत्रिक प्रणाली पर भी सवाल खड़े कर दिए हैं। पात्रा ने कहा कि "यह अब केवल एक पार्टी का नहीं, बल्कि पूरे देश का सवाल है। जनता को सच जानने का अधिकार है।" यह विवाद आने वाले बिहार चुनावों में राजनीतिक ध्रुवीकरण को और तेज़ कर सकता है.