बिहार में SIR अभियान पर संसद में हंगामा: विपक्ष ने उठाए तीखे सवाल

संसद में SIR अभियान पर बहस की मांग
मानसून सत्र के दौरान संसद में 'ऑपरेशन सिंदूर' पर चर्चा के साथ-साथ बिहार में चल रहे स्पेशल इंटेंसिव रिवीजन (SIR) अभियान को लेकर विपक्ष ने जोरदार हंगामा किया। विपक्ष लगातार इस मुद्दे को उठाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन सरकार की ओर से अब तक कोई स्पष्ट प्रतिक्रिया नहीं आई है। सोमवार को जब लोकसभा में विपक्ष ने SIR पर बहस की मांग की, तो सरकार ने नियमों का हवाला देकर इसे टालने का प्रयास किया।
सरकार का रुख और बहस की संभावनाएं
संसदीय कार्य मंत्री किरेन रिजिजू ने कहा कि यदि संसदीय नियम इसकी अनुमति देते हैं, तो स्पीकर इस पर विचार करने के लिए तैयार हैं। हालांकि, सरकारी सूत्रों का कहना है कि इस मुद्दे पर संसद में बहस संभव नहीं है। इसके पीछे तीन मुख्य कारण बताए जा रहे हैं।
प्रशासनिक प्रक्रिया का मामला
यह प्रशासनिक प्रक्रिया, न कि चुनाव सुधार
सरकारी सूत्रों के अनुसार, बिहार में चल रहा SIR अभियान कोई नया चुनाव सुधार नहीं है, बल्कि यह निर्वाचन आयोग द्वारा समय-समय पर की जाने वाली एक नियमित प्रशासनिक प्रक्रिया है। यह मतदाता सूची को अद्यतन करने के लिए की जाती है और इसमें किसी नीतिगत बदलाव का पहलू नहीं है। इसलिए इसे संसद में बहस का विषय नहीं माना जा सकता।
संसद में जवाबदेही का मुद्दा
संसद में जवाबदेही का सवाल
दूसरा महत्वपूर्ण कारण यह है कि यदि संसद में इस मुद्दे पर बहस होती है, तो विपक्ष के सवालों का उत्तर कौन देगा? चुनाव आयोग, जो एक स्वतंत्र संस्था है, संसद में अपनी बात नहीं रख सकता। ऐसे में चर्चा के दौरान तथ्यात्मक और अधिकारिक जवाब देने वाला कोई नहीं होगा, जिससे चर्चा का उद्देश्य अधूरा रह जाएगा।
कानून मंत्रालय की भूमिका
कानून मंत्रालय की सीमित भूमिका
तीसरी वजह यह है कि कानून मंत्रालय, जो चुनाव आयोग का नोडल मंत्रालय होता है, वह केवल प्रशासनिक सहायता प्रदान करता है, न कि चुनाव आयोग के नीतिगत निर्णयों में कोई दखल देता है। इसका मतलब है कि कानून मंत्रालय भी SIR जैसे मामलों पर संसद में सरकार की ओर से जवाबदेही नहीं निभा सकता।
विपक्ष की तीखी प्रतिक्रिया
विपक्ष के तीखे सवाल और मांग
बिहार में SIR अभियान को लेकर विपक्ष ने आक्रामक रुख अपनाया है। कांग्रेस नेता अभिषेक मनु सिंघवी ने कहा कि अदालत इस प्रक्रिया के विभिन्न पहलुओं पर गौर करेगी। उन्होंने आरोप लगाया कि यह प्रक्रिया नागरिकता की परीक्षा बन गई है, जिससे राज्य के लोगों में भय और संदेह का माहौल उत्पन्न हो रहा है।
संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस में विपक्ष की मांग
विपक्षी नेताओं की संयुक्त प्रेस कॉन्फ्रेंस
भाकपा (माले) लिबरेशन के महासचिव दीपांकर भट्टाचार्य, राजद सांसद मनोज झा और माकपा नेता नीलोत्पल बसु ने एक संयुक्त संवाददाता सम्मेलन में निर्वाचन आयोग के फैसले पर सवाल उठाते हुए इसे तुरंत रोकने की मांग की। उन्होंने कहा कि इस प्रक्रिया की वैधता को लेकर गंभीर सवाल उठ खड़े हुए हैं और विधानसभा चुनाव से ठीक पहले इस तरह की कवायद चुनावी निष्पक्षता पर प्रश्नचिह्न लगाती है।