बिहार में अगड़ी जातियों के विकास के लिए नीतीश कुमार का नया आयोग

नीतीश कुमार का महत्वपूर्ण निर्णय
बिहार में इस वर्ष के अंत में होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले, मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने एक महत्वपूर्ण और रणनीतिक कदम उठाया है। उन्होंने राज्य में अगड़ी जातियों के विकास हेतु 'उच्च जाति आयोग' के गठन की घोषणा की है। इस आयोग के अध्यक्ष के रूप में भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) के वरिष्ठ नेता महाचंद्र प्रसाद सिंह को नियुक्त किया गया है, जबकि जनता दल यूनाइटेड (जेडीयू) के राष्ट्रीय प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद को उपाध्यक्ष बनाया गया है। आयोग में दयानंद राय, जय कृष्ण झा और राजकुमार सिंह को सदस्य के रूप में शामिल किया गया है। आयोग का कार्यकाल तीन वर्ष निर्धारित किया गया है.
आयोग का उद्देश्य और कार्य
नीतीश कुमार की सरकार ने इस आयोग के गठन का उद्देश्य अगड़ी जातियों के सामाजिक, आर्थिक और शैक्षणिक विकास को सुनिश्चित करना बताया है। बिहार में अगड़ी जातियों में भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ जैसी जातियां शामिल हैं, जो कुल जनसंख्या का लगभग 20% हिस्सा बनाती हैं। यह आयोग इन समुदायों की समस्याओं का अध्ययन करेगा और उनके कल्याण के लिए नीतियों का निर्माण करेगा। इसके अलावा, यह सामाजिक समानता को बढ़ावा देने और अगड़ी जातियों के विकास के अवसरों को सुनिश्चित करने की दिशा में कार्य करेगा.
राजनीतिक संदर्भ और महत्व
इस कदम को बिहार की जटिल जातिगत समीकरणों के संदर्भ में महत्वपूर्ण माना जा रहा है। नीतीश कुमार ने लंबे समय से अति पिछड़ा वर्ग (EBC) और महादलित समुदायों के विकास पर जोर दिया है, लेकिन इस बार अगड़ी जातियों के लिए अलग से आयोग का गठन कर उन्होंने संतुलित दृष्टिकोण अपनाने की कोशिश की है। यह कदम राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि बीजेपी का पारंपरिक वोट बैंक अगड़ी जातियों में मजबूत रहा है.
रणनीतिक कदम और चुनावी तैयारी
बिहार विधानसभा चुनाव 2025, जो अक्टूबर या नवंबर में होने की संभावना है, से पहले इस आयोग का गठन एक रणनीतिक कदम माना जा रहा है। नीतीश कुमार और बीजेपी की अगुवाई वाला एनडीए बिहार में अपनी स्थिति मजबूत करने के लिए हर संभव प्रयास कर रहा है। हाल के लोकसभा चुनावों में एनडीए ने बिहार में 40 में से 30 सीटें जीती थीं.