बिहार में कांग्रेस की महागठबंधन में बढ़ती भूमिका

कांग्रेस की सक्रियता और महागठबंधन की रणनीति
बिहार में भारतीय जनता पार्टी ने जनता दल यू को दरकिनार कर एनडीए की कमान अपने हाथ में ले ली है, वहीं विपक्ष के महागठबंधन में कांग्रेस अपनी स्थिति मजबूत करने की कोशिश कर रही है। कांग्रेस के नेता लगातार बिहार का दौरा कर रहे हैं। राहुल गांधी ने बिहार में दो हफ्ते तक वोटर अधिकार यात्रा की, जिसके बाद एक सितंबर को पटना के गांधी मैदान से एक मार्च निकाला। इसके बाद, 24 सितंबर को राहुल गांधी पूरी पार्टी के साथ पटना पहुंचे, जहां कांग्रेस के प्रदेश मुख्यालय में कार्य समिति की बैठक हुई। यह बैठक 85 साल बाद पटना में आयोजित की गई, जिससे राजनीतिक हलकों में चर्चा का विषय बन गया। दो दिन बाद, 26 सितंबर को प्रियंका गांधी वाड्रा मोतिहारी में एक बड़ी सभा को संबोधित करने आईं। इस प्रकार, कांग्रेस ने बिहार में बिना किसी जमीनी आधार के अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है और ऐसा प्रतीत हो रहा है कि महागठबंधन की प्रमुख पार्टी वही बन गई है।
कांग्रेस के नेता अब स्पष्ट रूप से कहने लगे हैं कि महागठबंधन के प्रचार की जिम्मेदारी कांग्रेस को संभालनी चाहिए। इस रणनीति के तहत, कांग्रेस के नेता बिहार विधानसभा के नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार घोषित नहीं कर रहे हैं। उनका तर्क है कि यदि नीतीश बनाम तेजस्वी का मुद्दा उठता है, तो नीतीश कुमार की जीत निश्चित है। कांग्रेस यह समझा रही है कि तेजस्वी पर राजद के शासन का बोझ है, जंगल राज का मुद्दा है, और उनके खिलाफ आपराधिक मामले भी चल रहे हैं। इसके अलावा, कांग्रेस का कहना है कि यदि तेजस्वी नेतृत्व करेंगे, तो केवल मुस्लिम और यादव वोट ही मिलेंगे, जबकि यदि कांग्रेस चुनाव का नेतृत्व करेगी, तो वह ब्राह्मण और अन्य सवर्णों के साथ दलित वोट भी जोड़ सकेगी। यदि मुस्लिम और यादव के साथ अन्य वोट भी मिलते हैं, तो महागठबंधन की जीत की संभावना बढ़ जाएगी, अन्यथा इस बार भी गठबंधन विपक्ष में रह जाएगा। हालांकि, जैसे एनडीए में जदयू ने समर्पण किया है, वैसे ही महागठबंधन में राजद समर्पण के लिए तैयार नहीं है और अपनी सीटें कम करने को भी राजी नहीं है।