बिहार में भूराबाल की राजनीति की वापसी: क्या है इसका मतलब?

भूराबाल का नारा और उसकी ऐतिहासिक पृष्ठभूमि
उत्तर प्रदेश में तिलक, तराजू और तलवार का नारा भले ही वापस नहीं आया हो, लेकिन बिहार में 'भूराबाल' की राजनीति एक बार फिर से सक्रिय हो गई है। 'भूराबाल' का अर्थ है बिहार की चार प्रमुख सवर्ण जातियाँ: भूमिहार, राजपूत, ब्राह्मण और कायस्थ। यह नारा 1990 के दशक में प्रचलित हुआ था, जब तत्कालीन मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव ने 'भूराबाल साफ करो' का नारा दिया था। उस समय लालू प्रसाद गरीबों और पिछड़ों के नेता माने जाते थे, और मुस्लिम तथा यादव समुदायों के प्रतिनिधि के रूप में उभरे थे। इस नारे ने बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण मोड़ लाया था।
उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी का नारा
इसी समय, उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी ने 'तिलक, तराजू और तलवार, इनको मारो जूते चार' का नारा दिया, जिसमें ब्राह्मण, बनिया और राजपूत को निशाना बनाया गया। हालांकि, मायावती ने जल्दी ही इस नारे की सीमाओं को समझ लिया और 'हाथी नहीं गणेश है, ब्रह्मा, विष्णु, महेश है' का नारा देकर चुनावी सफलता हासिल की। इसके बाद से उत्तर प्रदेश में ऐसा कोई नारा नहीं सुना गया।
भूराबाल की वापसी और राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ
हाल ही में, राजद नेता अशोक महतो ने कहा कि 'भूराबाल पूरी तरह से साफ कर देना है', जबकि मुजफ्फरपुर में भी इसी तरह का नारा लगाया गया। जदयू नेता आनंद मोहन ने कहा कि इस बार भूराबाल वाले तय करेंगे कि किसकी सरकार बनेगी। हालांकि, यह भी ध्यान देने योग्य है कि बिहार की चारों सवर्ण जातियाँ अपनी संख्या बढ़ाने के लिए टैक्टिकल वोटिंग करती हैं।
बिहार की सामाजिक स्थिति और भविष्य की राजनीति
राजद नेताओं को यह समझना चाहिए कि बिहार का सामाजिक विमर्श अब 1990 के दशक से बहुत आगे बढ़ चुका है। ऐसे नारों से अगड़ा बनाम पिछड़ा का चुनाव नहीं बनाया जा सकता। बिहार की राजनीति में अब कई नए आयाम जुड़ चुके हैं, और यह देखना दिलचस्प होगा कि आने वाले चुनावों में ये बदलाव किस तरह से प्रभाव डालते हैं।