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बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण: समय सीमा और दस्तावेजों पर उठे सवाल

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य शुरू हो गया है, जो 25 जून से 26 जुलाई तक चलेगा। इस दौरान चुनाव कार्यालय के कर्मचारी घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करेंगे। हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठ रहे हैं, जैसे कि दस्तावेजों की मांग और समय सीमा। चुनाव आयोग ने जन्म प्रमाणपत्र और अन्य दस्तावेजों की आवश्यकता रखी है, जिससे लाखों लोगों के नाम कटने की आशंका है। विपक्षी पार्टियों ने इस प्रक्रिया का विरोध किया है। जानें इस मुद्दे पर और क्या कहा जा रहा है।
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बिहार में मतदाता सूची का पुनरीक्षण: समय सीमा और दस्तावेजों पर उठे सवाल

मतदाता सूची का पुनरीक्षण अभियान

बिहार में मतदाता सूची के पुनरीक्षण का कार्य आरंभ हो चुका है। यह अभियान 25 जून से 26 जुलाई तक, यानी एक महीने तक चलेगा। इस दौरान चुनाव कार्यालय के कर्मचारी और बूथ स्तर के अधिकारी (बीएलओ) घर-घर जाकर मतदाताओं का सत्यापन करेंगे। यह बिहार में 20 वर्षों में पहली बार हो रहा है कि मतदाता सूची का इतना व्यापक पुनरीक्षण किया जा रहा है। हालांकि, इस प्रक्रिया को लेकर कई सवाल उठने लगे हैं।


पहला सवाल इस अभियान की समय सीमा और इसकी टाइमिंग को लेकर है, खासकर जब विधानसभा चुनाव नजदीक हैं। चार महीने में मतदान होना है, और इससे ठीक पहले यह अभियान शुरू किया गया है। इसके अलावा, केवल एक महीने का समय निर्धारित किया गया है। इसके साथ ही, मतदाताओं से कई प्रकार के दस्तावेज मांगे जाएंगे, जो कि एक बड़ा समूह नहीं दिखा पाएगा।


दस्तावेजों की आवश्यकता

चुनाव आयोग ने यह तय किया है कि जिनका जन्म 1987 से पहले हुआ है, उन्हें अपने जन्म से संबंधित कोई प्रमाणपत्र प्रस्तुत करना होगा, साथ ही माता या पिता में से किसी के जन्म का प्रमाणपत्र भी देना होगा। वहीं, जिनका जन्म 1987 से 2004 के बीच हुआ है, उन्हें अपने जन्म प्रमाणपत्र के साथ माता और पिता दोनों के जन्म प्रमाणपत्र भी देने होंगे। यदि माता या पिता उस समय भारतीय नहीं थे, तो उन्हें पासपोर्ट और वैध वीजा की जानकारी देनी होगी।


इस अचानक की गई घोषणा और केवल एक महीने के समय में लाखों लोगों के पास ये दस्तावेज तैयार नहीं होंगे, जिससे उनके नाम मतदाता सूची से कटने की संभावना है।


मतदाता सूची का महत्व

चुनाव आयोग को समय-समय पर मतदाता सूची का पुनरीक्षण करना चाहिए ताकि इसे अद्यतन रखा जा सके। बिहार जैसे राज्यों में यह और भी आवश्यक है, क्योंकि यहां जन्म और मृत्यु प्रमाणपत्र पर ध्यान नहीं दिया जाता है। इसके अलावा, बड़ी संख्या में लोग पलायन करते हैं, लेकिन उनके नाम मतदाता सूची में बने रहते हैं। यही कारण है कि बिहार में मतदान का प्रतिशत हमेशा कम होता है।


बांग्लादेश से सटी सीमा के कारण, कई बांग्लादेशी घुसपैठिए बिहार के विभिन्न हिस्सों में बसे हुए हैं। इनमें से अधिकांश के पास आधार और वोटर आईकार्ड हो सकता है, लेकिन माता-पिता के जन्म प्रमाणपत्र नहीं होंगे। इस स्थिति को देखते हुए, बिहार की विपक्षी पार्टियों जैसे राजद, सीपीआई एमएल और कांग्रेस ने चुनाव आयोग की इस प्रक्रिया का विरोध किया है।


विपक्ष की प्रतिक्रिया

कांग्रेस पहले से ही महाराष्ट्र में मतदाता सूची से नाम हटाने और फर्जी नाम जोड़ने के आरोप लगा रही है। राहुल गांधी ने यह भी कहा है कि बिहार में भी महाराष्ट्र जैसी गड़बड़ी हो सकती है। पुनरीक्षण अभियान के बाद विपक्ष इन आरोपों को दोहरा रहा है, हालांकि वे तृणमूल कांग्रेस की तरह सक्रिय होकर गड़बड़ी रोकने के प्रयास नहीं कर रहे हैं।